HomeUncategorizedImportance of Asana: आसन का महत्त्व, जानिए आसन कितने प्रकार के होते...

Importance of Asana: आसन का महत्त्व, जानिए आसन कितने प्रकार के होते हैं?

आसन का महत्त्व (Importance of Asana): आसन के अभ्यास से स्थिरता और लघुता का विकास होता है। उससे मानसिक एकाग्रता और स्फूर्ति बढ़ती है। लघुता से प्रसन्नता उत्पन्न होती है। व्यक्ति स्वास्थता का अनुभव करता है। जाबाल एवं शांडिल्य उपनिषद् में आसन – विजय करने वाले को तीनों जगत् का विजेता बताया गया है- ‘येनासनं विजितं जगत्रय तेन विजितं भवति’। आसन-सिद्धि या आसन-विजय तब ही माना जाता है, जब साधक तीन घंटे से अधिक एक आसन में स्थिर और सुखपूर्वक बैठ सके। आसन की स्थिरता के लिए सत्वगुण का विकास आवश्यक है। आसन के अभ्यास से शरीर की जड़ता और तमोगुण का विलय होता है। मन की चंचलता मिटती है। परिणामत: साधक की आयु पर विजय होने लगती है। आसन सिद्ध करने से पूर्व प्राणायाम द्वारा नाड़ी शोधन आवश्यक है। नाड़ी शोधन से ही दीर्घकाल तक आसन में सुखपूर्वक स्थिर ठहरा जा सकता है। आसन और प्राणायाम एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। आसन-सिद्धि के लिए आसन का अभ्यास और स्थिरता जरूरी है। हालांकि आसन और प्राणायाम को महर्षि पतंजलि ने पृथक्-पृथक् अंग के रूप में स्वीकृत किया है।

आसनों का परिणाम (Result of Yoga Asanas)

आसन करने से शरीर स्वस्थ बनता है, यह गौण तथ्य है। आसनों का मूल उद्देश्य है – स्थिरता, एकाग्रता और चित्त की निर्मलता । यह तभी प्राप्त हो सकती है, जब व्यक्ति आसनों का अभ्यास नियमित करे। पतंजलि आसनों के परिणाम को दर्शाते हुए कहते हैं – ततो द्वन्द्वानभिघातः । आसनों से सर्दी-गर्मी, प्रियता-अप्रियता आदि द्वन्द्वों का अभिघात हो जाता है। आसनों से रजोगुण का विनाश होता है। सात्विक गुण का विकास होता है। सात्विक गुण के विकास से ही साधना का मार्ग स्पष्ट होता है। व्यक्ति सिद्धि को प्राप्त होता है। आसन के अभ्यास से व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य ही ठीक नहीं होता, बल्कि उससे जो एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि होती है वह है- आध्यात्मिक स्वास्थ्य। शरीर की स्थिरता से ही मन की एकाग्रता बढ़ती है। मन की एकाग्रता ही अध्यात्म के द्वार उद्घाटित होते हैं, जिससे व्यक्ति अपने स्वरूप में अवस्थित होता है। 

आसनों के प्रकार (Types of Asana)

आसन शरीर की विभिन्न आकृतियों से बनते हैं। ये आकृतियाँ जीवों की शरीर-रचना एवं आकारों से पहचानी जाती है। इसलिए 84 लाख जीव-योनियों की शरीर-स्थिति के अनुसार 84 लाख आसन बन जाते हैं। इन आसनों के अभ्यास और साधना के लिए अनेक जीवन चाहिए। साधना की दृष्टि से भी सबका महत्त्वपूर्ण उपयोग नहीं है। मनुष्य इस छोटे-से जीवन में कितने आसनों का अभ्यास कर सकेगा? घेरण्ड संहिता में 84 लाख आसनों में से केवल 84 आसनों का विधान किया गया है, उनमें भी 32 आसन ही श्रेयस्कर हैं।

श्री गोरखनाथ के शिष्य स्वात्माराम जी ने हठयोग प्रदीपिका में ग्यारह आसनों की चर्चा की है। किसी परम्परा में चार आसनों का उल्लेख किया गया है। कहीं-कहीं सिद्धासन और कमलासन केवल दो आसनों का ही विधान किया गया है। अंत में आसनों की महिमा का प्रदर्शन करते हुए कहा गया कि केवल एक सिद्धासन ही पर्याप्त है- 

एकं सिद्धासनं प्रोक्तं, द्वितीयं कमलासनम् । 

नासनं सिद्धसदृशं न कुम्भं केवलोपमः ।

न खेचरी समामुद्रा, न नादसदृशो लयः ।

सिद्धासन के समान कोई दूसरा महत्त्वपूर्ण आसन नहीं है।

इससे आगे योगकुण्डल्युपनिषद् में तो यहाँ तक कह दिया कि सिद्धासन, पद्मासन, षट्चक्र, सोलह आधार, तीन लक्ष्य और पांच आकाश जो शरीर में विद्यमान हैं, उनको जो नहीं जानता है, उसकी मुक्ति कैसे हो सकती है?

षट्चक्रं षोडशाधारं त्रिलक्ष्यं व्योम पंचकम्

स्वदेहे यो न जानाति, तस्य सिद्धिः कथं भवेत्।

 

आसनों की श्रेणियाँ (Classification of yoga asanas)

  1. शयन-स्थान – लेटकर किए जाने वाले आसन ।
  2. निषीदन-स्थान – बैठकर किए जाने वाले आसन ।
  3. ऊर्ध्व-स्थान – खड़े होकर किए जाने वाले आसन ।
  4. विशिष्ट आसन ।

विधिवत् शरीर को स्थिर बना कर जो आसन किया जाता है, वह कायगुप्ति है। कायगुप्ति शरीर का संयम है। यह तीनों प्रकार से हो सकता है-लेटकर, बैठकर और खड़े होकर । इन तीनों प्रकार के आसनों को सिद्ध किया जा सकता है। आसन की सिद्धि सरलता से प्राप्त की जा सके, इसके लिए सर्वप्रथम शयन-स्थान से आसन का प्रारम्भ करना शरीर विज्ञान की दृष्टि से उपयोगी है। बच्चा प्रारम्भ में लेटकर क्रिया करता है, फिर बैठता है और फिर खड़े होकर अपनी जीवन-यात्रा करता है । अत: आसन का क्रम भी शयन, निषीदन और ऊर्ध्व स्थिति के क्रम में रखा गया है। 

शयन -स्थान – लेटकर किए जाने वाले आसन

शयन-स्थान (sleeping pose) के अन्तर्गत चुने हुए आसनों का विवरण दिया गया है। लेटने पर जो-जो अंग प्रभावित होते हैं, उनको लक्षित कर शयन-आसनों का चुनाव किया जाता है। शयन-स्थान वाले आसन पीठ के बल और पेट एवं सीने के बल लेटकर किये जाते हैं, वे निम्नलिखित हैं-

  1. शयनासन 
  2. उत्तानपादासन
  3. पवनमुक्तासन
  4. सर्वांगासन
  5. हलासन
  6. कर्ण पीड़ासन
  7. मत्स्यासन
  8. मकरासन
  9. भुजंगासन
  10. शलभासन
  11. धनुरासन
  12. हृदयस्तम्भासन
  13. नौकासन

निषीदन-स्थान – बैठकर किए जाने वाले आसन (Sitting yoga poses)

  1. सुखासन
  2. स्वस्तिकासन
  3. पद्मासन
  4. योगमुद्रा
  5. बद्धपद्मासन
  6. उत्थित पद्मासन
  7. उत्कटासन
  8. गोदुहासन  
  9. गौमुखासन
  10. जानुशिरासन
  11. पश्चिमोत्तासन
  12. अर्द्धमत्स्येन्द्रासन
  13. उष्ट्रासन
  14. सिंहासन
  15. ब्रह्मचर्यासन
  16. सिद्धासन
  17. हंसासन
  18. कुक्कुटासन

ऊर्ध्व-स्थान – खड़े होकर किए जाने वाले आसन (standing yoga poses)

  1. समपादासन
  2. ताड़ासन
  3. इष्टवन्दनासन
  4. त्रिकोणासन
  5. मध्यपादशिरासन
  6. महावीरासन
  7. हस्तिसुण्डिकासन
  8. कोणासन
  9. गरुड़ासन
  10. पादहस्तासन

विशिष्ट आसन (special yoga poses)

  1. शीर्षासन
  2. अर्ध शंख प्रक्षालन
  3. मयूरासन
  4. चक्रासन
  5. उड्डियानासन
Manish Singh
Manish Singhhttps://infojankari.com/
मनीष एक डिजिटल मार्केटर प्रोफेशनल होने के साथ साथ धर्म और अध्यात्म में रुचि रखते हैं। अपने आध्यात्मिक गुरुजी श्री विजय सैनी जी को दूसरा जीवनदाता मानते हैं और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों और शिक्षा को सर्वजन तक पहुचाने की कोशिश कर रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here