HomeReligion24 Tirthankaras: जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों का परिचय

24 Tirthankaras: जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों का परिचय

24 Tirthankaras in Hindi: जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए हैं। तीर्थंकर का अर्थ है- जो तारे, तारने वाला। तीर्थंकर को अरिहंत कहा जाता है। मूलत: यह शब्द अर्हत पद से संबंधित है। अरिहंत का अर्थ होता है जिसने अपने भीतर के शत्रुओं पर विजय पा ली। ऐसा व्यक्ति जिसने कैवल्य ज्ञान को प्राप्त कर लिया। अरिहंत का अर्थ भगवान भी होता है।

जैन धर्म के 24 तीर्थंकर (24 Tirthankaras of Jainism in Hindi)

यहाँ जैन धर्म के २४ तीर्थंकरो का संक्षिप्त जीवन परिचय दिया गया है।

(1) ऋषभदेव (Rishabhdev Bhagwan)

कुलकरों की कुल परंपरा के सातवें कुलकर नाभिराज और उनकी पत्नी मरुदेवी से ऋषभदेव का जन्म चैत्र कृष्ण की अष्टमी-नवमी को अयोध्या में हुआ। इनके दो पुत्र भरत और बाहुबली तथा दो पुत्रियां ब्राह्मी और सुंदरी थीं। ऋषभदेव स्वायंभुव मनु से पांचवीं पीढ़ी में इस क्रम में हुए- स्वायंभुव मनु, प्रियव्रत, अग्नीघ्र, नाभि और फिर ऋषभ। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन आपको कैवल्य की प्राप्ति हुई। कैलाश पर्वत क्षेत्र के अष्टपद में आपको माघ कृष्ण 14 को निर्वाण प्राप्त हुआ। आपका प्रतीक चिह्न- बैल, चैत्यवृक्ष- न्यग्रोध, यक्ष- गोवदनल, यक्षिणी- चक्रेश्वरी हैं।

(2) अजीतनाथ जी

द्वितीय तीर्थंकर अजीतनाथजी की माता का नाम विजया और पिता का नाम जितशत्रु था। आपका जन्म माघ शुक्ल पक्ष की दशमी को अयोध्या में हुआ था। माघ शुक्ल पक्ष की नवमी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी को आपको कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। चैत्र शुक्ल की पंचमी को आपको सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। आपका प्रतीक चिह्न- गज, चैत्यवृक्ष- सप्तपर्ण, यक्ष- महायक्ष, यक्षिणी- रोहिणी है।

(3) संभवनाथ जी

तृतीय तीर्थंकर संभवनाथजी की माता का नाम सुसेना और पिता का नाम जितारी है। संभवनाथजी का जन्म मार्गशीर्ष की चतुर्दशी को श्रावस्ती में हुआ था। मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन आपने दीक्षा ग्रहण की तथा कठोर तपस्या के बाद कार्तिक कृष्ण की पंचमी को आपको कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। चैत्र शुक्ल पक्ष की पंचमी को सम्मेद शिखर पर आपको निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार उनका प्रतीक चिह्न- अश्व, चैत्यवृक्ष- शाल, यक्ष- त्रिमुख, यक्षिणी- प्रज्ञप्ति है।

(4) अभिनंदन जी

चतुर्थ तीर्थंकर अभिनंदनजी की माता का नाम सिद्धार्था देवी और पिता का नाम सन्वर (सम्वर या संवरा राज) है। आपका जन्म माघ शुक्ल की बारस को अयोध्या में हुआ। माघ शुक्ल की बारस को ही आपने दीक्षा ग्रहण की तथा कठोर तप के बाद पौष शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को आपको कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। बैशाख शुक्ल की छटमी या सप्तमी के दिन सम्मेद शिखर पर आपको निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार उनका प्रतीक चिह्न- बंदर, चैत्यवृक्ष- सरल, यक्ष- यक्षेश्वर, यक्षिणी- व्रजश्रृंखला है।

(5) सुमतिनाथ जी

पांचवें तीर्थंकर सुमतिनाथजी के पिता का नाम मेघरथ या मेघप्रभ तथा माता का नाम सुमंगला था। बैशाख शुक्ल की अष्टमी को साकेतपुरी (अयोध्या) में आपका जन्म हुआ। कुछ विद्वानों के अनुसार आपका जन्म चैत्र शुक्ल की एकादशी को हुआ था। बैशाख शुक्ल की नवमी के दिन आपने दीक्षा ग्रहण की तथा चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को आपको कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। चैत्र शुक्ल की एकादशी को सम्मेद शिखर पर आपको निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार उनका प्रतीक चिह्न- चकवा, चैत्यवृक्ष- प्रियंगु, यक्ष- तुम्बुरव, यक्षिणी- वज्रांकुशा है।

(6) पद्ममप्रभु जी

छठवें तीर्थंकर पद्मप्रभुजी के पिता का नाम धरण राज और माता का नाम सुसीमा देवी था। कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी को आपका जन्म वत्स कौशाम्बी में हुआ। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन आपको कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आपको सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार उनका प्रतीक चिह्न- कमल, चैत्यवृक्ष- प्रियंगु, यक्ष-मातंग, यक्षिणी- अप्रति चक्रेश्वरी है।

(7) सुपार्श्वनाथ जी

सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के पिता का नाम प्रतिस्थसेन तथा माता का नाम पृथ्वीदेवी था। आपका जन्म वाराणसी में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की बारस को हुआ था। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा फाल्गुन कृष्ण पक्ष की सप्तमी को आपको कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की सप्तमी के दिन आपको सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- स्वस्तिक, चैत्यवृक्ष- शिरीष, यक्ष- विजय, यक्षिणी- पुरुषदत्ता है।

(8) चन्द्रप्रभु जी

आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभु के पिता का नाम राजा महासेन तथा माता का नाम सुलक्षणा था। आपका जन्म पौष कृष्ण पक्ष की बारस के दिन चन्द्रपुरी में हुआ। पौष कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा फाल्गुन कृष्ण पक्ष 7 को आपको कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को आपको सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- अर्द्धचन्द्र, चैत्यवृक्ष- नागवृक्ष, यक्ष- अजित, यक्षिणी- मनोवेगा है।

(9) पुष्पदंत जी

नौवें तीर्थंकर पुष्पदंत को सुविधिनाथ भी कहा जाता है। आपके पिता का नाम राजा सुग्रीव राज तथा माता का नाम रमा रानी था, जो इक्ष्वाकु वंश से थीं। मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की पंचमी को काकांदी में आपका जन्म हुआ। मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की छठ (6) को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा कार्तिक कृष्ण पक्ष की तृतीया (3) को आपको सम्मेद शिखर में कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। भाद्र के शुक्ल पक्ष की नवमी को आपको सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। आपका प्रतीक चिह्न- मकर, चैत्यवृक्ष- अक्ष (बहेड़ा), यक्ष- ब्रह्मा, यक्षिणी- काली है।

(10) शीतलनाथ जी

दसवें तीर्थंकर शीतलनाथ के पिता का नाम दृढ़रथ (Dridharatha) और माता का नाम सुनंदा था। आपका जन्म माघ कृष्ण पक्ष की द्वादशी (12) को बद्धिलपुर (Baddhilpur) में हुआ। मघा कृष्ण पक्ष की द्वादशी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा पौष कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) को आपको कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। बैशाख के कृष्ण पक्ष की दूज को आपको सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। आपका प्रतीक चिह्न- कल्पतरु, चैत्यवृक्ष- धूलि (मालिवृक्ष), यक्ष- ब्रह्मेश्वर, यक्षिणी- ज्वालामालिनी है।

(11) श्रेयांसनाथ जी

ग्यारहवें तीर्थंकर श्रेयांसनाथजी की माता का नाम विष्णुश्री या वेणुश्री था और पिता का नाम विष्णुराज। सिंहपुरी नामक स्थान पर फागुन कृष्ण पक्ष की ग्यारस को आपका जन्म हुआ। श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को सम्मेद शिखर (शिखरजी) पर आपको निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार उनका प्रतीक चिह्न- गैंडा, चैत्यवृक्ष- पलाश, यक्ष- कुमार, यक्षिणी- महाकाली है।

(12) वासुपूज्य जी

बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य प्रभु के पिता का नाम वसुपूज्य (Vasupujya) और माता का नाम जया देवी था। आपका जन्म फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) को चंपापुरी में हुआ था। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अमावस्या को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा मघा की दूज (2) को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को चंपा में आपको निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- भैंसा, चैत्यवृक्ष- तेंदू, यक्ष- षणमुख, यक्षिणी- गौरी है।

(13) विमलनाथ जी

तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथ के पिता का नाम कृतर्वेम (Kritaverma) तथा माता का नाम श्याम देवी (सुरम्य) था। आपका जन्म मघा शुक्ल तीज को कपिलपुर में हुआ था। मघा शुक्ल पक्ष की तीज को ही आपने दीक्षा ग्रहण की तथा पौष शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन कैवल्य की प्राप्ति हुई। आषाढ़ शुक्ल की सप्तमी के दिन श्री सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- शूकर, चैत्यवृक्ष- पाटल, यक्ष- पाताल, यक्षिणी- गांधारी।

(14) अनंतनाथ जी

चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथजी की माता का नाम सर्वयशा तथा पिता का नाम सिंहसेन था। आपका जन्म अयोध्या में वैशाख कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी (13) के दिन हुआ। वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्दशी (14) को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा कठोर तप के बाद वैशाख कृष्ण की त्रयोदशी के दिन ही कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। चैत्र शुक्ल की पंचमी के दिन आपको सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार उनका प्रतीक चिह्न- सेही, चैत्यवृक्ष- पीपल, यक्ष- किन्नर, यक्षिणी- वैरोटी है।

(15) धर्मनाथ जी

पन्द्रहवें तीर्थंकर श्री धर्मनाथ के पिता का नाम भानु और माता का नाम सुव्रत था। आपका जन्म मघा शुक्ल की तृतीया (3) को रत्नापुर में हुआ था। मघा शुक्ल की त्रयोदशी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा पौष की पूर्णिमा के दिन आपको कैवल्य की प्राप्ति हुई। ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की पंचमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- वज्र, चैत्यवृक्ष- दधिपर्ण, यक्ष- किंपुरुष, यक्षिणी- सोलसा।

(16) शांतिनाथ जी

जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ का जन्म ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को हस्तिनापुर में इक्ष्वाकु कुल में हुआ। शांतिनाथ के पिता हस्तिनापुर के राजा विश्वसेन थे और माता का नाम आर्या (अचीरा) था। आपने ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को दीक्षा ग्रहण की तथा पौष शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन आपको कैवल्य की प्राप्ति हुई। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- हिरण, चैत्यवृक्ष-नंदी, यक्ष- गरूड़, यक्षिणी- अनंतमती हैं।

(17) कुंथुनाथ जी

सत्रहवें तीर्थंकर कुंथुनाथजी की माता का नाम श्रीकांता देवी (श्रीदेवी) और पिता का नाम राजा सूर्यसेन था। आपका जन्म वैशाख कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हस्तिनापुर में हुआ था। वैशाख कृष्ण पक्ष की पंचमी के दिन दीक्षा ग्रहण की तथा चैत्र शुक्ल पक्ष की पंचमी को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। वैशाख शुक्ल पक्ष की एकम के दिन सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- छाग (बकरा), चैत्यवृक्ष- तिलक, यक्ष- गंधर्व, यक्षिणी- मानसी है।

(18) अरहनाथ जी

अठारहवें तीर्थंकर अरहनाथजी या अर प्रभु के पिता का नाम सुदर्शन और माता का नाम मित्रसेन देवी था। आपका जन्म मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन हस्तिनापुर में हुआ। मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की ग्यारस को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा कार्तिक कृष्ण पक्ष की बारस को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। मार्गशीर्ष की दशमी के दिन सम्मेद शिखर पर निर्वाण की प्राप्ति हुई। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार उनका प्रतीक चिह्न- तगरकुसुम (मत्स्य), चैत्यवृक्ष- आम्र, यक्ष- कुबेर, यक्षिणी- महामानसी है।

(19) मल्लिनाथ जी

उन्नीसवें तीर्थंकर एवं जैन धर्म की एकमात्र महिला तीर्थंकर मल्लिनाथ के पिता का नाम कुंभराज और माता का नाम प्रभावती (रक्षिता) था। मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की ग्यारस को आपका जन्म मिथिला में हुआ था। मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की एकादशी को दीक्षा ग्रहण की तथा इसी माह की तिथि को कैवल्य की प्राप्ति भी हुई। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की बारस को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- कलश, चैत्यवृक्ष- कंकेली (अशोक), यक्ष- वरुण, यक्षिणी- जया है।

(20) मुनिसुव्रतनाथ जी

बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के पिता का नाम सुमित्र तथा माता का नाम प्रभावती था। आपका जन्म ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की आठम को राजगढ़ में हुआ था। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की बारस को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा फाल्गुन कृष्ण पक्ष की बारस को ही कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की नवमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- कूर्म, चैत्यवृक्ष- चंपक, यक्ष- भृकुटि, यक्षिणी- विजया।

(21) नमिनाथ जी

इक्कीसवें तीर्थंकर नमिनाथ के पिता का नाम विजय और माता का नाम सुभद्रा (सुभ्रदा-वप्र) था। आप स्वयं मिथिला के राजा थे। आपका जन्म इक्ष्वाकु कुल में श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मिथिलापुरी में हुआ था। आषाढ़ मास के शुक्ल की अष्टमी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कैवल्य की प्राप्ति हुई। वैशाख कृष्ण की दशमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- उत्पल, चैत्यवृक्ष- बकुल, यक्ष- गोमेध, यक्षिणी- अपराजिता।

(22) नेमिनाथ जी

बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के पिता का नाम राजा समुद्रविजय और माता का नाम शिवादेवी था। आपका जन्म श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी को शौरपुरी (मथुरा) में यादव वंश में हुआ था। शौरपुरी (मथुरा) के यादव वंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ। अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वासुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण। इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को गिरनार पर्वत पर कैवल्य की प्राप्ति हुई। आषाढ़ शुक्ल की अष्टमी को आपको उज्जैन या गिरनार पर्वत पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- शंख, चैत्यवृक्ष- मेषश्रृंग, यक्ष- पार्श्व, यक्षिणी- बहुरूपिणी है।

(23) पार्श्वनाथ जी

तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पिता का नाम राजा अश्वसेन तथा माता का नाम वामा था। आपका जन्म पौष कृष्ण पक्ष की दशमी को वाराणसी (काशी) में हुआ था। चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ही कैवल्य की प्राप्ति हुई। श्रावण शुक्ल की अष्टमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- सर्प, चैत्यवृक्ष- धव, यक्ष- मातंग, यक्षिणी- कुष्माडी है।

(24) महावीर जी (Bhagwan Mahaveer)

चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म नाम वर्धमान, पिता का नाम सिद्धार्थ तथा माता का नाम त्रिशला (प्रियंकारिनी) था। आपका जन्म चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी के दिन कुंडलपुर में हुआ था। मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की दशमी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा वैशाख शुक्ल की दशमी के दिन कैवल्य की प्राप्ति हुई। 42 वर्ष तक आपने साधक जीवन बिताया। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन आपको पावापुरी पर 72 वर्ष में निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- सिंह, चैत्यवृक्ष- शाल, यक्ष- गुह्मक, यक्षिणी- पद्मा सिद्धायिनी है।

24 तीर्थंकर के नाम और चिन्ह

जैन धर्म के 24 तीर्थंकर कौन थे? जैन धर्म के 24 तीर्थंकर के नाम और चिन्ह यहाँ दिये गए हैं।

क्रम संख्यातीर्थंकरजन्मस्थानमातापितावर्णचिह्नवृक्षनिर्वाण स्थल
 ऋषभदेव जी (आदिनाथ)विनित्तानागरीमरूदेवीनाभिरायस्वर्णिमबैलवट वृक्ष (बरगद)अष्टपद (कैलश)
 अजितनाथ जीअयोध्याविजयादेवीजितशत्रुस्वर्णिमहाथीसप्तपर्णसम्मेदशिखर
 सँभवनाथश्रावस्तीसेनारानीजितारीस्वर्णिमघोड़ाशालसम्मेदशिखर
 अभिनन्दन जीअयोध्यासिद्धार्थासन्वरस्वर्णिमबंदरसरलसम्मेदशिखर
 सुमतिनाथ जीअयोध्यासुमंगलामेघरथस्वर्णिमचकवाप्रियंगुसम्मेदशिखर
 पद्मप्रभु जीकौशाम्बीसुसीमाश्रीधरलालकमलप्रियंगुसम्मेदशिखर
 सुपार्श्वनाथ जीवाराणसीपृथ्वीसुप्रतिष्ठस्वर्णिमसाथियाशिरीषसम्मेदशिखर
 चंदाप्रभु जीचंद्रपुरलक्ष्मणामहासेनश्वेतचन्द्रमानागसम्मेदशिखर
 सुविधिनाथ जीकनान्दिनागरीरामासुग्रीवश्वेतमगरअक्ष (बहेड़ा)सम्मेदशिखर
१० शीतलनाथ जीभद्रपुरा या भदिलपुरासुनंदादृढरथस्वर्णिमकल्पवृक्षधूलि (मालिवृक्ष)सम्मेदशिखर
११ श्रेयांसनाथ जीसिम्हापुरीविशनाविष्णुस्वर्णिमगैण्डापलाशसम्मेदशिखर
१२ वासुपूज्य जीचम्पापुरीजयावासुपूज्यलालभैंसातेंदूचम्पापुरी
१३ विमलनाथ जीकाम्पिल्यपुराश्यामाकृतवर्मनस्वर्णिमसूकरपाटलसम्मेदशिखर
१४ अनंतनाथ जीअयोध्यासुयशासिंहसेनस्वर्णिमसेहीपीपलसम्मेदशिखर
१५ धर्मनाथ जीरत्नापुरीसुव्रताभानुस्वर्णिमवज्रदधिपर्णसम्मेदशिखर
१६ शांतिनाथ जीगजपुरा या हस्तिनापुरअचिराविश्वसेनस्वर्णिमहिरणनंदीसम्मेदशिखर
१७ कुंथुनाथ जीगजपुराश्रीदेवीशूरस्वर्णिमबकरातिलकसम्मेदशिखर
१८ अरनाथ जीगजपुरादेवीरानीसुदर्शनस्वर्णिममछलीआम्रसम्मेदशिखर
१९ मल्लिनाथ जीसम्मेद शिखरप्रभावतीकुम्भनीलाकलशकंकेली (अशोक)सम्मेदशिखर
२० मुनिसुव्रत जीराजगृहपदमावतीसुमित्रकालाकछुआचंपकसम्मेदशिखर
२१ नमिनाथ जी.सम्मेद शिखरवप्राविजयपीलानीलकमलबकुलसम्मेदशिखर
२२ अरिष्ठनेमी जीसौरिपुर / उज्जीनता (उज्जैन)शिवदेवीसमुद्रविजयकालाशंखमेषश्रृंगगिरनार पर्वत
२३ पार्श्वनाथ जीवाराणसीवामादेवीविश्वसेननीलासाँपधवसम्मेदशिखर
२४ महावीर स्वामी जीकुण्डग्रामत्रिशलासिद्धार्थपीलासिंहशालपावापुरी

 

पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न. जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर कौन थे?

उत्तर. भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे

प्रश्न. जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर कौन थे ?

उत्तर. ऋषभदेव भगवान जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर थे।

प्रश्न. जैन धर्म की एकमात्र महिला तीर्थंकर कौन थी?

उत्तर. जैन धर्म की श्वेतांबर परंपरा के अनुसार, मल्लीनाथजी जैन धर्म में एकमात्र महिला तीर्थंकर थीं, और संभवतः किसी भी धर्म में महिला तीर्थंकर का एकमात्र उदाहरण थीं।

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Manish Singh
Manish Singhhttps://infojankari.com/
मनीष एक डिजिटल मार्केटर प्रोफेशनल होने के साथ साथ धर्म और अध्यात्म में रुचि रखते हैं। अपने आध्यात्मिक गुरुजी श्री विजय सैनी जी को दूसरा जीवनदाता मानते हैं और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों और शिक्षा को सर्वजन तक पहुचाने की कोशिश कर रहे हैं।

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