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Yoga Asanas: प्राणायाम क्या है? Pranayama Kya Hai

Yoga Asanas:  प्राण जीवन शक्ति है, उससे प्राणी जीवित एवं सक्रिय रहते हैं। प्राणायाम जहां प्राण को नियमित और विस्तृत बनाता है, वहीं दूसरी ओर प्राण की शक्ति को स्वाधीन बना कर तेजस्वी भी बनाता है। प्राणायाम के द्वारा नाड़ियों और कोशिकाओं में प्राण प्रवाहित होता है।

प्राणायाम में पूरक, रेचक एवं कुंभक होता है। प्राणायाम प्राण को अनुशासि करने की प्रक्रिया है। प्राणायाम श्वास क्रिया का सम्यक् नियमन और नियोजन है। प्राणायाम द्वारा व्यक्ति श्वास, मन और प्राण को वश में कर के अपनी सुप्त चेतना को जागृत कर सकता है।

प्राणायाम क्या है? (Pranayam Kya Hai)

प्राणायाम श्वसन क्रियाओं का सम्यक् नियमन और नियोजन है। प्राणायाम श्वास-उच्छ्वास का सम्यक् अभ्यास है। प्राण का व्यवस्थित विस्तार एवं संयम प्राणायाम है। प्राणायाम से शरीर को शक्ति प्राप्त होती है, वहीं चैतन्य-जागरण की भूमिका का निर्माण भी होता हैं प्राणायाम से शरीर, रक्त एवं स्नायु मंडल का शोधन होता है।

श्वास-प्रश्वास को व्यवस्थित एवं संयमित करने से प्राणायाम फलित होता है। अत: श्वास-प्रश्वास पूरक, रेचक और कुम्भक को प्राणायाम कहा जाता है किन्तु साधना करने वाला साधक इस भेद रेखा को स्पष्ट समझता है। इस रहस्य को हम बिजली के बल्ब के उदाहरण से समझने का प्रयास कर सकते हैं। तारों में प्रवाहित होने वाला विद्युत-प्रवाह तार एवं बल्ब से भिन्न है। हालांकि बल्ब एवं तार के द्वारा विद्युत को अनुशासित एवं व्यवस्थित किया जाता है। ठीक विद्युत प्रवाह की तरह प्राण भी प्राणायाम के द्वारा जागृत और अनुशासित होता है। महर्षि पतंजलि के अनुसार श्वास और प्रश्वास की गति का विच्छेद ही प्राणायाम है। जब श्वास-प्रश्वास अनुशासित होकर निग्रह की स्थिति में पहुंचता है, तब प्राणायाम की पूर्णता होती है। “प्राण वै बलम्’ अर्थात् प्राण ही बल है। इसके अनुसार जब प्राण, शक्ति संपन्न होकर शरीर के अंग-अंग में फैलता है, तो उसे बलवान् बनाता है।

प्राणायाम के फायदे (Pranayam Ke Fayde)

ताप एवं गतिशीलता के लिए हजारों नसें रक्त को प्रवाहित करती है। रक्त में आये दोष प्राणायाम से विशुद्ध होते हैं और शक्ति का संचयन होता है। प्राणायाम केवल श्वास और निश्वास के नियमन का ही प्रयोग नहीं है, अपितु मन और इन्द्रियों को संयम में स्थापित कर चैतन्य के द्वार उद्घाटित करने का माध्यम भी है। प्राणायाम ऊपर से श्वास-उच्छ्वास के संचरण और निरोध की क्रिया दिखाई देता है, परन्तु प्राणायाम से इन्द्रियाँ और मन सभी प्रभावित होते हैं। प्राण शक्ति की क्रिया और प्रतिक्रिया से प्रतिक्षण रासायनिक परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन से पुराने तन्तु टूटते हैं, नये निर्मित होते हैं। इस टूट-फूट को व्यवस्थित करने में प्राणायाम अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है यद्यपि प्रत्येक प्राणी स्वाभाविक क्रम से पूरक, कुम्भक और रेचक की क्रिया करता है परंतु कार्याधिक्य से यह क्रिया स्वाभाविक और विधिवत् नहीं हो पाती। इससे रुग्णता में वृद्धि होती है।

प्राणायाम करने से शरीर, मन चैतन्य, स्वास्थ्य को उपलब्ध होते हैं। साधारणतः श्वास की पूरक और रेचन क्रिया में फेफड़ों का बहुत कम हिस्सा उपयोग में आता है। प्राणायाम द्वारा पूर्ण पूरक और पूर्ण रेचन करके हम फेफड़ों का पूरा उपयोग कर सकते हैं। विधिवत् प्राणायाम की क्रिया से फेफड़े अधिक शुद्ध वायु ग्रहण करते हैं। दीर्घ रेचन से अशुद्ध वायु निकल जाती है, जिससे शरीर दीप्तिमान् और स्वस्थ बनता है। प्राणायाम की क्रिया से मस्तिष्क की सुप्त शक्तियां जागृत होने लगती है तथा शरीर का प्रत्येक अंग स्वस्थ एवं सुन्दर बनता है।

यह भी पढ़ें – आसनों एवं यौगिक क्रियाओं का वैज्ञानिक महत्व

प्राणायाम का फेफड़ों पर असर (Pranayam ka lungs par effect)

प्राणायाम का फेफड़ों पर सीधा असर होता है। फेफड़ों में छोटे-छोटे तन्तुओं के करोड़ों कुटीर हैं। इनका कार्य है, श्वास को भरना और उसे छोड़ना। जब श्वास अन्दर जाती है तो फेफड़े फैलते हैं और प्रश्वास होता है तब ये सिकुड़ते हैं। सामान्यतः एक व्यक्ति एक मिनट में 15 से 20 बार श्वास-प्रश्वास करता है। यह श्वास- प्रश्वास ही शरीर की समस्त प्रक्रियाओं का आधार बनता है। इससे ही फेफड़े रक्त शुद्ध कर शरीर को रोग से मुक्त रखते हैं।

प्राणायाम की प्रक्रिया में श्वास की मात्रा, निरोध ही मुख्य हैं। श्वास जितनी गहरी और लम्बी होती है, फेफड़ों को फैलने और रक्त के शोधन कार्य में उतनी ही सहायता मिलती है।

प्राणायाम और स्वास्थ्य (Pranayam aur health)

स्वास्थ्य के लिए जहां आसन उपयोगी है वहां प्राणायाम उसमें नवजीवन का संचार करने वाला है। प्राणायाम प्राण-शक्ति को विकसित और जागृत करता है। इस जागृति का निमित्त प्राणायाम बनता है।

प्राणायाम संजीवनी शक्ति है, जिससे शारीरिक स्वास्थ्य तो बनता ही है साथ ही साथ चित्त की निर्मलता भी बढ़ती है। इससे आध्यात्मिक शक्ति को जागृत होने का अवसर उपलब्ध होता है। प्राणायाम मानसिक शांति एवं आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। उससे समाधि की उपलब्धि होती है और व्यक्ति अपने स्वरूप की यात्रा करने लगता है। शारीरिक स्वास्थ्य उसका पहला लाभ है।

प्राणायाम का शरीर और मन पर प्रभाव (Pranayam ka man par prabhav)

महर्षि पतंजलि ने प्राणायाम के परिणाम की चर्चा करते हुए लिखा है कि “ततः क्षीयते प्रकाशावरणम्’ – प्राणायाम के द्वारा ज्ञान-अज्ञान प्रकाश पर छाया आवरण क्षीण हो जाता है। चेतना पर छाया आवरण हट जाता है। प्राणायाम केवल श्वास-प्रश्वास का व्यायाम ही नहीं, अपितु कर्म-निर्जरा की वह महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिससे चित्त की निर्मलता बढ़ती है, ज्ञान का विकास होता है। इन्द्रिय शुद्धि एवं मन की प्रशस्ति एवं एकाग्रता बढ़ती है।

“दह्यन्ते ध्यायमानानां धातूनां हि यथा मलाः ।
तथेन्द्रियाणां दह्यन्ते दोषा प्राणस्य निग्रहात् ॥”

स्वर्ण, रजत आदि धातुओं के मल को जलाने के लिए अग्नि उपयोगी है, वैसे ही इन्द्रियों के विकार को जलाने के लिए प्राणायाम आवश्यक है। प्राण के निग्रह से दोषों का परिहार होता है। उससे सिंह की तरह पराक्रम उत्पन्न हो जाता

प्राण जीवन-यात्रा के लिए आवश्यक तत्त्व है। उसके बिना जीवन की यात्रा खंडित हो जाती है। भोजन और पानी शरीर धारण करने के लिए अपेक्षित है, तो प्राण के बिना जीवन का अस्तित्व ही नहीं रह सकता । प्राण सतत् प्रवाही जीवन शक्ति है। वह प्राण वायु से तेजस्वी बना रहता है। प्राण वायु, श्वसन-क्रिया पूरक, रेचक और कुम्भक से सक्रिय होता है। प्राणायाम से रक्त का शोधन होता है तथा जठराग्नि की वृद्धि, देह में स्फूर्ति, लचक और कांति बढ़ती है।

Manish Singh
Manish Singhhttps://infojankari.com/
मनीष एक डिजिटल मार्केटर प्रोफेशनल होने के साथ साथ धर्म और अध्यात्म में रुचि रखते हैं। अपने आध्यात्मिक गुरुजी श्री विजय सैनी जी को दूसरा जीवनदाता मानते हैं और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों और शिक्षा को सर्वजन तक पहुचाने की कोशिश कर रहे हैं।
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