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Yoga Asanas: आसन क्यों ? लाभ, उद्देश्य, एवं सावधानियां

Yoga Asanas: योग आसन क्या है?

आसन केवल शारीरिक प्रक्रिया मात्र नहीं है, उसमें अध्यात्म निर्माण के बीज छिपे हैं। आसन अध्यात्म प्रवेश का प्रथम द्वार है। आसन शब्द का अनेक अर्थों में प्रयोग होता है। आस् धातु बैठने के लिए प्रयुक्त होती है। पतंजलि ने कहा ‘स्थिरसुखमासनम्’ (2/46) जिसमें स्थिरता और सुखपूर्वक ठहरा जा सके, वह आसन है । विधिपूर्वक लेटना, बैठना, खड़े रहना- तीनों मुद्राओं में आसन किये जा सकते हैं। आसन शरीर की क्रियाओं को व्यवस्थित ही नहीं बनाता अपितु वाक् और मन को भी स्थिरता प्रदान करता है। वर्तमान युग में आसनों की उपयोगिता निर्विवाद सिद्ध है ।

व्यक्ति मूढ़ता से बहिर्यात्रा करने लगता है। बहिर्मुखी वृत्ति ही व्यक्ति को स्वरूप से दूर ले जाती है। स्वरूप की दूरी ही आधि-व्याधि और उपाधि का कारण बनती है। इनसे ही असमाधि उत्पन्न होती है। प्रेक्षा-साधना सर्वांगीण पद्धति है। इसमें जहाँ अध्यात्म के शिखरों की चर्चा है, वहाँ शरीर की शुद्धि, श्वास और प्राण शुद्धि के लिए आसन और प्राणायाम का भी विधिवत् प्रशिक्षण दिया जाता है।

आसन के लिए प्रयुक्त होने वाले वस्त्र आदि को भी आसन की संज्ञा से अभिहित किया जाता है । ये आसन, सूत, कुशा, तिनके, ऊन आदि के होते हैं । ऊन का आसन श्रेष्ठ माना जाता है। आसन शरीर की सहज स्थिति के लिए है। हठयोग में आसनों के असंख्य प्रकार बताये गये हैं। जीव योनियों के समान आसनों की संख्या भी 84 लाख है। इनमें से 84 आसनों की प्रधानता रही है। समय, क्षेत्र एवं शारीरिक बनावट को ध्यान में रखते हुए ध्यान और शक्ति संवर्धन दृष्टि से कुछ चुने हुए आसनों की यहाँ चर्चा की गई है।

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आसन और शक्ति संवर्धन (Asana and Strength Enhancement)

संस्कार-शुद्धि साथ-साथ शक्ति-संवर्धन के लिए आसनों का अभ्यास किया जाता है। स्थिति (steadiness) एवं गति (Speed) आसन के दो स्वरूप है।

ध्यान के लिए ‘स्थित आसन’ उपयोगी है। इसमें लम्बे समय तक ठहरा जा सकता है। पद्मासन, वज्रासन, सिद्धासन, सुखासन एवं समपाद आसन-ये ध्यान आसन हैं। स्थित-आसन से मांसपेशियों को विश्राम मिलता है। विश्राम की यह स्थिति कायोत्सर्ग का एक प्रकार है। 

गति वाले आसनों (motion asanas) में माँसपेशियों की पारस्परिक गति से शरीर को संतुलित बनाया जाता है। ये पेशियाँ जोड़ों को व्यवस्थित बनाती हैं तथा गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध संतुलन बनाए रखती हैं। इसमें शक्ति का संवर्धन होता है।

गत्यात्मक आसनों (dynamic asanas) में शरीर के अवयवों को गतिशील करना होता है। यह गति अत्यन्त धीमी तथा सावधानीपूर्वक की जाती है। इन्हें करते समय शरीर की बदलती हुई पेशियों पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। गति के पश्चात् शरीर को कुछ समय तक शिथिल छोड़ देना आवश्यक होता है, जिससे विजातीय तत्वों (exotic elements) का निरसन एवं शरीर में शक्ति संचय हो सके।

प्रारम्भ में आसन के अभ्यास से पेशियों पर स्वल्प- सा तनाव आता है, पर क्रमश: अभ्यास के द्वारा आसन की सहज स्थिति तक पहुंचा जा सकता है। उससे तनाव का अनुभव नहीं होता । केवल पेशियों पर किसी अवयव को एक आकार में ले जाना ही आसन का उद्देश्य नहीं है। आसन के साथ शरीर को शिथिल छोड़ना भी आवश्यक है, क्योंकि उससे ही स्नायु संस्थान में ठहरे हुए विजातीय तत्त्वों का शोधन होता है। योग-सूत्र में उल्लिखित ‘प्रयत्न- शैथिल्यानन्तसमापत्तिभ्याम्’ (2/47) सही अवस्था है, इससे शरीर शिथिल होकर तनाव मुक्त हो जाता है।

आसन विजय साधना का आधार है। उसके अभाव में व्यक्ति दीर्घध्यान, कायोत्सर्ग, भावना-योग आदि का अभ्यास कैसे कर सकता है? आसनों का प्रयोग केवल शारीरिक ही नहीं आध्यात्मिक भी है। आसनों के अभ्यास से न केवल काय संयम, अपितु वाक् एवं मन भी संयमित होता है। इससे शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक तनाव- -मुक्ति सहज होती है। आसनों के नियमित अभ्यास के काया अन्तरंग यात्रा के उपयुक्त बन जाती है। बाह्य क्लेश सहने की बन जाता है। बाह्य क्लेश सहने की क्षमता उत्पन्न होने लगती है।

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आसन और स्वास्थ्य लाभ (Health benefits of yoga asanas in Hindi)

आसन शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति एवं आध्यात्मिक विकास के लिए उपयुक्त भूमिका का निर्माण करता है। आसन अस्वस्थ व्यक्ति के लिए जितना उपयोगी है उतना ही स्वस्थ व्यक्ति के लिए अत्यंत आवश्यक है। वर्तमान युग में कार्याधिक्य एवं व्यस्तता से मनुष्य अपने जीवन की उपयोगी एवं आवश्यक क्रियाओं का भी परित्याग कर देता है, जिससे वह न केवल स्वास्थ्य से हाथ धोता है, अपितु जीवन-विकास के मार्ग को भी अवरुद्ध कर देता है। 

आसन से मानसिक प्रसन्नता के साथ-साथ शरीर के अवयवों पर सीधा असर होता है। संधि-स्थल, पक्वाशय, यकृत, फेफड़े, हृदय, मस्तिष्क आदि सम्यक्तया अपना-अपना कार्य करने लगते हैं। 

शरीर की मंशपेशियों को मजबूत बनाता है (Asana strengthen the muscles)

आसन से मासंपेशियाँ सदृढ़ और सुडौल बनती हैं, जिससे पेट और कमर का मोटापा दूर होता है । आसन करने से चर्बी (fat) भी स्वत: कम होने लगती है। शरीर के सभी अंग एवं कोशिकाएँ सक्रिय हो जाती हैं, जिससे रोग-प्रतिकार की क्षमता एवं स्वास्थ्य उपलब्ध होता है।

आसन स्नायु तंत्र को मजबूत करते हैं (Asanas strengthen the nervous system)

स्नायुमंडल को शक्ति-सम्पन्न एवं सक्रिय करने के लिए आसन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्नायुओं में ज्ञान वाहिनी और क्रिया-वाहिनी दोनों प्रकार की नाड़ियाँ होती हैं। आसन से उन पर विशेष प्रकार का दबाव पड़ता है, जिससे उनका संकोच-विमोच होता है। इससे वे पुष्ट एवं सक्रिय बनती है। उनकी सक्रियता एवं क्रियाशीलता शक्ति उत्पन्न करती है। स्नायु-मंडल मस्तिष्क से लेकर पैर के अंगुष्ठ तक फैले हुए हैं। आसन से समस्त स्नायु प्रभावित होते हैं, अतः स्वास्थ्य साधना की दृष्टि से आसन की उपयोगिता से इनकार नहीं किया जा सकता। 

जोड़ों में लचीलापन लाता है (Asana and its effect on joints in Hindi)

साधना की दृष्टि से जोड़ों में लचीलापन अत्यंत अपेक्षित है । सुषुम्ना-शीर्ष तथा सुषुम्ना के जोड़ों में लचीलापन होने से वहाँ के शक्ति-स्रोतों में सक्रियता बढ़ती है। स्वास्थ्य एवं साधना की दृष्टि से सुषुम्ना (स्पाइनल कॉर्ड) का स्वस्थ होना अत्यंत आवश्यक है। आसनों का सुषुम्ना पर सीधा असर पड़ता है। आसन की गतिविधि से पाचन-संस्थान सक्रिय बनता है। उसके रासायनिक द्रव्यों का समुचित स्राव होता है।

आसन और रक्त परिसंचरण पर इसका प्रभाव (Asana and its effect on blood circulation in Hindi)

आसनों का प्रभाव रक्त-संचार पर भी होता है। आसन से रक्त-शिराओं की गति में संकोच-विमोच होता है, जिससे उनमें रक्त संचार सम्यक्तया होने लगता है। साथ ही प्रत्येक अंग का पोषण एवं अशुद्ध तत्व का परिहार होता है।

आसन तनाव को कम करने में मदद करता है (Asana effects on mental health in Hindi)

बौद्धिक विकास के साथ भौतिक वातावरण ने आज व्यक्ति को तनावपूर्ण स्थिति में पहुंचा दिया है। रक्तचाप एवं रक्त-मंदता की बीमारी प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इस पर नियंत्रण के लिए योगासन सहज साधन है। कायोत्सर्ग के रूप में खोजी गई विधि जहाँ व्यक्ति को तनाव मुक्त करती है, वहीं रक्तचाप एवं उसकी मंदता पर भी नियंत्रण करती है।

फेफड़ों पर सकारात्मक प्रभाव (Asana effect on lungs in Hindi)

आसनों में श्वास-प्रश्वास का भी विशेष प्रयोग किया जाता है, जिससे फेफड़ों की क्रिया पूरी होती है। उसका प्रभाव हृदय और रक्त-शोधन पर पड़ता

योगासन (आसन) अंतःस्रावी ग्रंथियों को प्रभावित करते हैं (Asana effect on glands in Hindi)

आसन का हमारी अन्त: स्रावी ग्रन्थियों (एण्डोक्राइन ग्लैण्ड्स) पर भी प्रभाव पड़ता है। ये शरीर एवं भावनाओं का नियंत्रण करती है। इन ग्रन्थियों से एक विशेष प्रकार का स्राव होता है, जिन्हें हॉर्मोन कहते हैं। इससे शरीर, मन एवं चैतन्य-केन्द्रों के विकास में सहयोग मिलता है। शरीर-विज्ञान ने ग्रन्थियों के कार्यों एवं प्रवृत्तियों पर सूक्ष्मता से अनुसंधान किया है। उससे ज्ञात हुआ है कि कौन-कौन सी ग्रन्थियाँ किन-किन भावों एवं कार्यों का नियंत्रण करती हैं। उन्हें नियंत्रित करने के लिए आसन-बन्ध एवं यौगिक-क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है।

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आसनों के उद्देश्य (Purpose of Asana in Hindi)

आसन से शरीर की सुघड़ता और सौन्दर्य में अभिवृद्धि होती है। साथ ही मानसिक शांति और निश्चिंत जीवन की उपलब्धि भी होती है। आसन करने का उद्देश्य है- शरीर के यंत्र को साधना के अनुरूप बनाना। शरीर का प्रत्येक अवयव सक्रिय एवं स्वस्थ बने, यह स्वास्थ्य और साधना दोनों दृष्टियों से अपेक्षित है। यह निर्विवाद है कि काया की क्षमता के अभाव में वाक् और मन शीघ्र उत्तेजित हो जाते हैं। वाक् और मन पर संयम से पूर्व काय-संयम आवश्यक है। उसके लिए आसन प्रक्रिया सम्यक् अनुष्ठान है। आचार्य कुन्दकुन्द ने तो स्पष्ट उद्घोषित किया है- “जिन शासन को जानने के लिए आहार-विजय के साथ-साथ आसन-विजय को भी जानना आवश्यक है।”

आसन और व्यायाम में मौलिक अन्तर है। व्यायाम (एक्सरसाइज) अथवा बॉडी बिल्डिंग से शरीर की कुछ माँसपेशियाँ एवं कुछ अवयव ही पुष्ट बनते हैं। उनकी पुष्टता एक बार माँसपेशियों के उभार के रूप में सामने आती है, पर अन्त में उनमें कड़ापन आने लगता है। उनको छोड़ देने से माँसपेशियाँ ढ़ीली पड़ जाती है और वे कुरूप लगती हैं। दूसरे प्रकार के व्यायाम-कुश्ती, दौड़, बैठकें आदि एक बार तो शरीर की माँसपेशियों आदि को प्रभावित करते हैं, किन्तु स्थायित्व की दृष्टि से उनके भी अंतिम परिणाम सुन्दर नहीं होते ।

आसन योगियों द्वारा खोजा गया अनूठा विज्ञान है। आसन हाथ-पाँवों को ऊँचा-नीचा करना मात्र ही नहीं है, अपितु उसके पीछे पूरा विज्ञान है। कौन-सा आसन किस अवयव पर क्या प्रभाव डालता है, वह प्रभाव क्यों और किसलिए होता है, इन सबकी प्रायोगिक व्याख्याएँ आज शोधकर्त्ताओं के पास उपलब्ध हैं।

आसनों के 5 आवश्यक विधि-निषेध (Rules and regulations of Asana in Hindi)

  1. जिन व्यक्तियों के कान बहते हों, नेत्र ताराएँ कमजोर हों एवं हृदय दुर्बल हो, वे शीर्षासन न करें।
  2. उदरीय अवयवों में पीड़ा एवं तिल्ली में अभिवृद्धि वाले व्यक्ति भुजंगासन, शलभासन, धनुरासन न करें।
  3. कोष्ठबद्धता (कब्ज) से पीड़ित व्यक्ति योगमुद्रासन, पश्चिमोत्तासन अधिक समय तक न करें ।
  4. हृदय दौर्बल्य में साधारण उड्डियान और नौली क्रिया न करें। 5. फेफड़ों के दौर्बल्य में उज्जाई प्राणायाम और कुम्भक न किया जाए।
  5. जिन व्यक्तियों को उच्च रक्तचाप रहता हो, वे कठोर यौगिक अभ्यास न करें । 

आसन करते समय किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए (Things to keep in mind while performing yoga asanas in Hindi)

1. उत्साह की अनुभूति (sense of euphoria in Asana)

यौगिक अभ्यास का प्रभाव कान्ति एवं स्फूर्ति-नाश न होकर उत्साह की अनुभूति हो । शरीर और मन में थकान भी महसूस न हो ।

2. बीच- बीच में आवश्यकतानुसार विश्राम (Intermittent rest as needed during Asana)

पूरे अभ्यास क्रम को एक साथ निरन्तर करना आवश्यक नहीं है। बीच- बीच में आवश्यकतानुसार कायोत्सर्ग विश्राम किया जा सकता है।

3. जबरदस्ती ना करें (Don’t force during asana)

अभ्यास क्रम में लगाए गए बल से शरीर किसी भी प्रणाली पर कोई तनाव न पड़े।

4. सजग रहें (alertness)

आसन सजग रह कर, आत्म-विश्वास से संपादित करने से ध्येय की पूर्ति होती है। आसन करते समय चित्त को सजग रखकर उसमें ही अपने आपको लीन रखें। कम से कम मानस-चक्षुओं से उस आसन का साकार रूप बना लें।

5. पुनः अभ्यास करें (practice again and again)

यदि बीच में लम्बे समय तक अभ्यास रुक गया हो तो उसका पुनः अभ्यास करें। उसकी पूरी मात्रा तक पहले की अपेक्षा अल्प समय में ही पहुँचा जा सकता है।

6. भोजन के उपरान्त लगभग डेढ़ घण्टे तक योगाभ्यास न करें (Avoid performing asana about one and a half hours after a meal)

अल्प मात्रा में पेय एवं ठोस खाद्य पदार्थ या पूर्ण मात्रा में पेय पदार्थ ग्रहण करने के उपरान्त लगभग डेढ़ घण्टे तक योगाभ्यास न करें।

7. योगासन के बाद भोजन का नियम (food rules after yoga asana in Hindi)

योगाभ्यास के बाद आधे घंटे तक भोजन एवं दस मिनट तक नाश्ता न करें ।

8. आसनों का समय धीरे-धीरे बढ़ाएं (Increase the time of asanas gradually)

आसनों के अभ्यास को धीरे-धीरे बढ़ाएं। कम समय में अधिक आसनों की बजाय, आसनों का समय बढ़ाने की कोशिश करें।

9. श्वास के नियम (breathing rules of asana in Hindi) 

आसन में सामान्यतः श्वास गहरा व दीर्घ लें। जब शरीर को झुकाना व मोड़ना हो जब सामान्यतः श्वास लें। सीधे होकर श्वास छोड़ें। श्वास निश्वास को उस समय बढ़ाने की कोशिश करें। बढ़ाएँ।

10. आसन प्राणायाम का सही क्रम क्या है? (Asana first then Pranayama)

आसनों के पश्चात् प्राणायाम करें। प्राणायाम का अभ्यास धीरे-धीरे सीख कर आगे बढ़ाना चाहिए।

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Prakhar Singh
Prakhar Singhhttps://infojankari.com/hindi/
प्रखर सिंह अपनी पढाई के दौरान से ही योग, अध्यात्म में रूचि रखते हैं और अपनी जानकारियों को साझा करने के लिए कलम उठाई।

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