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Yoga Asanas – आसन करने की सही विधि, समय एवं नियम

योग आसन (Yoga Asanas) शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक स्वास्थ्य को बनाए रखने और सुधारने का माध्यम है। योग का मतलब ‘एकता’ है, और यहाँ दिए गए कुछ चुने गए योग आसन व्यक्ति को उस एकता की ओर ले जाते हैं।

योग आसनों का नियमित अभ्यास शारीरिक लाभ, मानसिक शांति, और आत्मा के विकास में मदद कर सकता है। यह व्यक्ति को स्वस्थ रखने के साथ ही अध्यात्मिक विकास की ओर अग्रसर कर सकता है। योग आसनों का नियमित अभ्यास व्यक्ति को एक संतुलित और सकारात्मक जीवन की दिशा में आगे बढ़ने में मदद कर सकता है।”

आसन क्या है ? (Yoga Asanas kya hai)

पद्मासन, भद्रासन, सिद्धासन या सुखासन आदि किसी भी आसन में स्थिरता और सुखपूर्वक बैठना आसन कहलाता है। साधक को जप, उपासना एवं ध्यान आदि करने के लिए किसी भी आसन में स्थिरता और सुखपूर्वक बैठने का लम्बा अभ्यास भी करना चाहिए। जो इन आसनों में नहीं बैठ सकते या रोगी हैं, उनके लिए महर्षि व्यास कहते हैं कि वे सोपाश्रय आसन, अर्थात् कुर्सी अथवा दीवार आदि का भी आश्रय (सहारा) लेकर प्राणायाम-ध्यान आदि का अभ्यास कर सकते हैं | जप एवं ध्यानादि-रूप उपासना के लिए आसन का अभ्यास अति आवश्यक है। किसी ध्यानात्मक आसन के करते समय मेरुदण्ड सदा सीधा होना चाहिए । भूमि समतल हो, बिछाने के लिए गद्दीदार वस्त्र, कुशा या कम्बल आदि ऐसा आसन होना चाहिए जो विद्युत् का कुचालक तथा आरामदायक हो। उपासना के लिए एकान्त स्थान, शुद्ध वायु, मक्खी-मच्छर आदि से रहित वातावरण उपयुक्त है।

आसनोपयोगी नियम, सही विधि एवं समय (Asanas Rules, How To, and Timing in Hindi)

हठयोग में ८४  प्रकार के आसन  बताये गये हैं। ध्यानात्मक आसनों  के अतिरिक्त हठयोग में दूसरे ऐसे आसन वर्णित हैं, जिनका सम्बन्ध शारीरिक एवं मानसिक आरोग्य से है। इन आसनों को करने से प्रत्येक अंग-प्रत्यंग को पूरी क्रियाशीलता मिलती है एवं वे सक्रिय, स्वस्थ, और लचीले बन जाते हैं। 

आसन के लिए उपयुक्त समय (Best time for yogasanas)

 प्रातः-सायं दोनों समय कर सकते हैं। यदि दोनों समय नहीं कर सकते, तो प्रातःकाल का समय उत्तम है। प्रातःकाल मन शान्त रहता है। प्रातः शौचादि से निवृत्त होकर खाली पेट तथा दोपहर के भोजन के लगभग ५-६ घण्टे बाद सायंकाल आसन कर सकते हैं। आसन करने से पहले शौच आदि से निवत्त होना चाहिए। यदि कब्ज रहता है तो प्रातःकाल ताँबे या चाँदी के बर्तन में रखे हुए पानी को पीना चाहिए। उसके पश्चात् थोड़ा भ्रमण करें। इससे पेट साफ हो जाता है। अधिक कब्ज हो, तो त्रिफला चूर्ण चूर्ण सोते समय गर्म पानी से लें। 

आसन के लिए उपयुक्त स्थान (best place for yogasan)

स्वच्छ, शान्त एवं एकान्त स्थान आसनों के लिए उत्तम है। यदि वृक्षों की हरियाली के समीप बाग, तालाब या नदी का किनारा हो, तो सर्वोत्तम है। खुले वातावरण एवं वृक्षों के नजदीक ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में होती है, जो स्वास्थ्य के लिए उत्तम है। यदि घर में आसन-प्राणायाम करें, तो घी का दीपक या गुग्गुल आदि जलाकर उस स्थान को सुगन्धित करना चाहिए। 

आसन के लिए उपयुक्त वेशभूषा (best dress for yoga postures)

आसन करते समय शरीर पर वस्त्र कम और सुविधाजनक होने चाहिए। पुरुष हाफ पैण्ट और बनियान का उपयोग कर सकते हैं। माताएँ और बहनें सलवार, ब्लाउज आदि पहनकर आसन, प्राणायाम आदि का अभ्यास करें। 

आसन की मात्रा (Asanas timing)

भूमि पर बिछाने के लिए मुलायम दरी या कम्बल का प्रयोग करना उचित है। खुली जमीन पर आसन न करें। अपने सामर्थ्य के अनुसार व्यायाम करना चाहिए। आसनों का पूर्ण अभ्यास एक घण्टे में, मध्यम अभ्यास ३० मिनट में तथा संक्षिप्त अभ्यास १५ मिनट में होता है। आधा घण्टा तो प्रत्येक व्यक्ति को योगासन करना ही चाहिए। 

आसन के लिए उपयुक्त आयु (best age for performing asanas)

मन एकाग्र कर प्रसन्नता एवं उत्साह के साथ अपनी आयु, शारीरिक शक्ति और क्षमता का पूरा ध्यान रखते हुए यथाशक्ति अभ्यास करना चाहिए। तभी वह योग से वास्तविक लाभ उठा सकेगा। वृद्ध एवं दुर्बल व्यक्तियों को आसन एवं प्राणायाम अल्प मात्रा में करने चाहिए। दस वर्ष से अधिक आयु के बालक सभी यौगिक अभ्यास कर सकते हैं। गर्भवती महिलाएँ कठिन आसनादि न करें। वे केवल शनैः शनै दीर्घ श्वसन, प्रणव-नाद एवं गायत्री आदि पवित्र मन्त्रों द्वारा ध्यान करें। 

अवस्था एवं सावधानियाँ (Condition and Precautions in asanas)

सभी अवस्थाओं में आसन एवं प्राणायम किये जा सकते हैं। इन क्रियाओं से स्वस्थ व्यक्ति का स्वास्थ्य उत्तम बनता है। वह रोगी नहीं होता और रोगी व्यक्ति स्वस्थ होता है। परन्तु फिर भी कुछ ऐसे आसन हैं, जिनको रोगी व्यक्ति को नहीं करना चाहिए यथा जिनके कान बहते हों, नेत्रों में लाली हो, स्नायु एवं हृदय दुर्बल हो, उनको शीर्षासन नहीं करना चाहिए। हृदय-दौर्बल्यवाले को अधिक भारी आसन पूर्ण शलभासन, धनुरासन आदि नहीं करना चाहिए। अण्डवृद्धिवालों को भी वे आसन नहीं करने चाहिए जिनसे नाभि के नीचे वाले हिस्से पर अधिक दबाव पड़ता है। उच्च रक्तचापवाले रोगियों को सिर के बल किये जाने वाले शीर्षासन आदि तथा महिलाओं को ऋतुकाल में ४-५ दिन आसनों का अभ्यास नहीं करना चाहिए। जिनको कमर और गर्दन में दर्द रहता हो, वे आगे झुकनेवाले आसन न करें। 

आसनोपयोगी नियम (Rules of asanas)

आज समाज में कुछ ऐसी भ्रान्ति फैलती जा रही है कि कुछ लोग मात्र योग के कुछ आसनों को करके अपने-आप को योगी कहने लगते हैं और कुछ लोग उनको योगी भी समझने लगते हैं। योगासन तो योग का एक अंगमात्र है। योगी होने के लिए तो अहिंसा, सत्य, अस्तेय व ब्रह्मचर्यादि रूप यम-नियमों सहित अष्टांग योग का पूर्ण पालन करते हुए दीर्घकाल तक श्रद्धापूर्वक समाधि का अभ्यास करना पड़ता है।

1. भोजन के नियम (Food rules for yoga asanas)

भोजन आसन के लगभग आधे घण्टे पश्चात् करना चाहिए। भोजन में सात्त्विक पदार्थ हों। तले हुए गरिष्ठ पदार्थों के सेवन से जठर विकृत हो जाता है। आसन के बाद चाय नहीं पीनी चाहिए। एक बार चाय पीने से यकृत आदि कोमल ग्रन्थियों के लगभग ५० सेल्स निष्क्रिय हो जाते हैं। इससे आप स्वयं अनुमान कर सकते हैं कि चाय से कितनी हानि है। यह भी स्वास्थ्य की एक भयंकर शत्रु है, जो शरीर-रूपी पावन मन्दिर को विकृत कर देती है। इसमें एक प्रकार का नशा भी होता है, जिसका व्यक्ति अभ्यस्त हो जाता है। जठराग्नि को मन्द करने एवं अम्लपित्त, गैस, कब्जादि रोगों को उत्पन्न करने में चाय का सबसे अधिक योगदान होता है। यकृत् को विकृत करने में भी चाय और अंग्रेजी दवा दोनों की हानिकारक भूमिका होती है। 

2. श्वास-प्रश्वास का नियम (breathing rules for yoga asanas)

आसन करते समय सामान्य नियम है कि आगे की ओर झुकते समय श्वास बाहर निकालते हैं तथा पीछे की ओर झुकते समय श्वास अन्दर भरकर रखते हैं। श्वास नासिका से ही लेना और छोड़ना चाहिए, मुख से नहीं; क्योंकि नाक से लिया हुआ श्वास फिल्टर होकर अन्दर जाता है। ९.दृष्टिः आँखें बन्द करके योगासन करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है, जिससे मानसिक तनाव एवं चंचलता दूर होती है। सामान्यतः आसन एवं प्राणायाम आँखें खोलकर भी कर सकते हैं। 

3. आसनो के क्रम (sequence of asanas in hindi)

कुछ आसन एक पार्श्व करने होते हैं। यदि कोई आसन दायीं करवट करें तो उसे बायीं करवट भी करें। इसके अतिरिक्त आसनों का एक ऐसा क्रम निश्चित कर लें कि प्रत्येक अनुवर्ती आसन से विघटित दिशा में भी पेशियों और सन्धियों का व्यायाम हो जाये । उदाहरणतः सर्वांगासन के उपरान्त मत्स्यासन, मण्डूकासन के बाद उष्ट्रासन किया जाये। नवाभ्यासी शुरू में २-४ दिन मांसपेशियों और सन्धियों में पीड़ा अनुभव करेंगे। अभ्यास जारी रखें । पीडा स्वत शांत हो जायेगी। लेटी अवस्था में किये गये आसनों के बाद जब भी उठा जाये, बाईं करवट की ओर झुकते हुए उठना चाहिए। अभ्यास के अन्त में शवासन ८-१० मिनट के लिए अवश्य करें, ताकिअंग-प्रत्यंग शिथिल हो जायें। 

4. आसनो के दौरान विश्राम (rules of rest during asanas)

आसन करते हुए जब-जब थकान हो, तब-तब शवासन या मकरासन में विश्राम करना चाहिए। थक जाने पर बीच में भी विश्राम कर सकते हैं |

5. गुरु की जरूरत (perform under an expert teacher only)

गुरूपदिष्टमार्गेण योगमेव समभ्यसेत । 

आसनो की सिद्धि गुरुकृपा और गुरु-उपदिष्ट मार्ग से ही होती है। इसलिए योगासन, प्राणायाम, ध्यान आदि का अभ्यास प्रारम्भ में गुरु के सान्निध्य में ही करना चाहिए। 

6. यम-नियम (Yam-niyam)

योगाभ्यासियों को यम-नियम का पालन पूरी शक्ति के साथ करना चाहिए। बिना नियमों के पालन के कोई भी व्यक्ति योगी नहीं हो सकता। 

7. शरीर का तापमान (body temprature during asanas)

शरीर का तापमान अधिक उष्ण होने या ज्वर होने की स्थिति में योगाभ्यास करने से तापमान बढ़ जाये तो चन्द्रस्वर यानि बाईं नासिका से श्वास अन्दर खींचकर (पूरक कर), सूर्य-स्वर, यानि दायीं नासिका से रेचक (श्वास बाहर निकालना) करने की विधि बार-बार करके तापमान सामान्य कर लेना चाहिए। 

8. पेट की सफाई (clean stomach)

पेट की ठीक से सफाई न होती हो, कब्ज और अपच की शिकायत रहती हो तो कुछ दिन प्रारम्भ में कोई सौम्य रेचक हरड़ या त्रिफलादि चूर्ण रात को सोते समय ले लें। अन्यथा पेट साफ न होने की स्थिति में आँख, मुख, सिर में विकार एवं स्नायु-मण्डल में कमजोरी होने की शिकायत हो सकती है। अत: पेट का साफ होना, कब्ज-रहित होना, अपच न होना, रात को समय से सोकर पूरी नींद लेना और उचि आहार-विहार करना बहुत ही आवश्यक है। 

9. कठिन आसन (tough yoga poses)

जिन व्यक्तियों का कभी अस्थिभंग हुआ हो, वे कठिन आसनों का अभ्यास कभी न करें, अन्यथा उसी स्थान पर हड्डी दोबारा टूट सकती है। 

10. पसीना आने पर (sweating during asanas)

अभ्यास के दौरान पसीना आ जाये तो तौलिये से पोंछ लें, इससे चुस्ती आ जाती चर्म स्वस्थ रहता है और रोगाणु चर्म-मार्ग से शरीर में प्रवेश नहीं कर सकेंगे। योगासनों का अभ्यास यथासम स्नानादि से निवृत्त होकर करना चाहिए। अभ्यास के १५-२० मिनट बाद भी शरीर का तापमान सामान्य होने स्नान कर सकते हैं।

यह भी पढ़ें: Yogasan का महत्व: 84 योग आसनों के नाम और उनके लाभ

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