HomeHealth JankariSarvangasana: सर्वांगासन की विधि, सावधानी, फायदे

Sarvangasana: सर्वांगासन की विधि, सावधानी, फायदे

Sarvangasana in Hindi: सर्व अंगों का आसन ही सर्वांगासन (Shoulder stand pose) कहलाता है। सर्वांगासन अपने नाम के अनुरूप सम्पूर्ण अंगों की क्रियाओं को ठीक करने वाला आसन है। सर्वांगासन शीर्षासन के समस्त लाभों को सहजता से समेट लेता है। मनुष्य पैर के बल चलता है, खड़ा होता है। इस प्रकार चलने और खड़े रहने से शरीर के अवयव नीचे की ओर झूलते रहते हैं। इस प्रयोग से शरीर के अवयव विपरीत स्थिति में हो जाते हैं। हृदय, फेफड़े, गुर्दे एवं अन्य अवयवों को कम श्रम करना पड़ता है। रक्त परिभ्रमण में भी सहज गति आ जाती है, जिससे प्रत्येक अंग को प्रचुर मात्रा में रक्त और शक्ति प्राप्त होती है ।

सर्वांगासन को अंग्रेजी में शोल्डर स्टैंड (sarvangasana english name is shoulder stand) भी कहते हैं।

सर्वांगासन की विधि और लाभ (Method and benefits of Sarvangasana in Hindi)

सर्वांगासन की विधि

  1. भूमि पर आसन बिछाकर पीठ के बल लेटें।
  2. हाथ शरीर के बराबर फैलायें। हथेलियाँ भूमि पर शरीर से सटाकर रखें।
  3. श्वास भरते हुए पैरों को धीरे-धीरे ऊपर उठायें। पंजों को सीधा 90 डिग्री का कोण बनायें। श्वास छोड़ें, कुछ क्षण ठहरें ।
  4. श्वास भरते हुए कमर को उठायें।
  5. हथेलियों का सहारा देते हुए दोनों हाथों को कोहनी से मोड़कर धड़ और पैरों को सीधा रखें।
  6. श्वास-प्रश्वास सहज रहेगी । ठुड्डी कंठ-कूप से लगी रहेगी।
  7. दृष्टि पैर के अंगूठों पर टिकी रहेगी। कुछ समय तक इस अवस्था में रुकें ।
  8. जब वापस मूल स्थिति में आवें तब सावधानी पूर्वक श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे पैरों को 90° के कोण तक लायें ।
  9. श्वास भरें, कुछ देर रूकें एवं पुनः श्वास को छोड़ते हुए धीरे-धीरे पैरों को भूमि की ओर ले आयें।
  10. नीचे आते समय गर्दन व सिर को जमीन पर ही रहने दें।

सर्वांगासन का स्वास्थ्य पर प्रभाव (Effects of Sarvangasana on health in Hindi)

सर्वांगासन स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त उपयोगी है। सर्वांगासन को आसनों का राजा कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।सर्वांगासन से कंठमणी, कंधे, हाथ एवं मस्तिष्क सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। सर्वांगासन को करते समय शरीर की स्थिति विपरीत हो जाती है।

  • शरीर के मुख्य अवयव – हृदय, फेफड़े, अमाशय, तिल्ली, लीवर, छोटी आँत और बड़ी आँत सभी विपरीत स्थिति में आ जाते हैं। कुछ अवयव हृदय से काफी दूर होते हैं। उनको शुद्ध रक्त को इच्छित अंग तक पहुंचाने में कठिनाई होती है।
  • मस्तक इस आसन से सहज हो जाता है । मस्तक को पूरी मात्रा में रक्त मिलने लगता है, जिससे उसकी शक्ति और कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। जालन्धर बन्ध इसमें सहज लग जाता है और थायरायड, पैराथायरायड से संबंधित दोष दूर कर देता है। आँखों की ज्योति बढ़ती है।
  • गर्दन, कंधा, सीना, फेफड़ों के स्नायु मृदु और सुदृढ़ होते हैं। शरीर का विकास भी संतुलित होता है। स्वभाव में मधुरता आती है।

सर्वांगासन का ग्रंथि-तन्त्र पर प्रभाव (Effect of Sarvangasana on the glandular system in Hindi)

सर्वांगासन ग्रन्थि-तंत्र को प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण आसन है। थायरायड, पैरा-थायरायड कंठ में स्थित महत्त्वपूर्ण ग्रंथियाँ हैं।

  • थायरायड से निकलने वाला स्राव थायरॉक्सिन हॉर्मोन है। यह हॉर्मोन शरीर के विकास और ह्रास का जिम्मेदार होता है। थायराइड के स्रावों में कमी होने से व्यक्ति ठिगना रहता है, उसकी लम्बाई नहीं बढ़ पाती। सर्वांगासन के अभ्यास से थायराइड के हॉर्मोन आवश्यकता के अनुरूप निकलने लगते हैं। विशुद्धि केन्द्र (throat chakra) के विकास से कला, काव्य, वाणी और स्वरों की मधुरता उपलब्ध होती है।
  • थायरॉक्सिन की कमी का सीधा प्रभाव स्वभाव पर होता है। व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा होने लगता है। मोटापा, बाल झड़ना, पेशियों की कमजोरी आलस्य आदि बढ़ने लगते हैं। सर्वांगासन इन सबका सीधा समाधान करता है। स्वभाव में सहिष्णुता बढ़ने लगती है ।
  • बाल झड़ने में कमी आती है। पेशियों की शक्ति बढ़ने से आलस्य दूर होने लगता है। थायरॉक्सिन की अधिकता से चयापचय की क्रिया, शरीर का तापक्रम, पसीना निकलने की क्रिया तीव्र मात्रा में होने लगती है। अनिद्रा, नेत्र-गोलक बाहर आना, भयंकर मुखाकृति होना आदि रोगों के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। सर्वांगसन इन सबको संतुलित बनाता है, जिससे व्यक्ति का शरीर, मन और भाव संतुलित बनने लगते हैं ।
  • पेराथायरायड ग्रन्थि से पेराथार्मोन नाम हॉर्मोन निकलता है। इसके असंतुलन से कैल्शियम, फॉसफोरस जैसे तत्वों की कमी हो जाती है, जिससे हड्डियों का विकास रुक जाता है। अधिक हॉर्मोन स्रावित होने से भी उनका असंतुलन होने लगता है । शरीर की लम्बाई बढ़ने के कारण हड्डियाँ दुर्बल होने लगती हैं। हल्की-सी चोट से वे चूर-चूर हो जाती सर्वांगासन के प्रयोग से पेराथार्मोन का संतुलन बना रहता है।
  • सामान्य रूप से पिट्च्युटरी, पिनियल, हाइपोथैलेमस ग्रन्थियाँ भी इस आसन से प्रभावित होती हैं। सर्वांगासन से सभी अंग और सभी ग्रन्थि-तंत्र प्रभावित होते हैं। रक्त संचरण तंत्र शक्तिशाली और स्वस्थ बनता है, जिसका परिणाम सम्पूर्ण शरीर को मिलता है। इससे शरीर की सुघड़ता एवं सुन्दरता बढ़ती है। सचमुच सर्वांगासन जीवनी शक्ति को संतुलित बनाये रखने वाला महत्त्वपूर्ण आसन है।

सर्वांगासन का समय और श्वास विधि (Sarvangasana time and breathing method in Hindi)

  • समय – इसे आधे मिनट से प्रारम्भ करें। प्रति सप्ताह एक-एक मिनट कर पाँच मिनट तक बढ़ाएं।
  • श्वास विधि: पैर उठाते समय श्वास लें। फिर श्वास छोड़ें। उसके पश्चात् सहज श्वास-प्रश्वास करें। वापस लौटते समय श्वास पूरी लें। श्वास छोड़ते हुए 90° तक आ जायें ।

सर्वांगासन में सावधानी (caution in sarvangasana in hindi)

  • उच्च रक्तचाप एवं दिल की बीमारी वालों के लिए यह आसन वर्जित है।
  • यकृत और तिल्ली के बढ़ जाने पर यह आसन नहीं करना चाहिए।

सर्वांगासन के फायदे (Benefits of Sarvangasana)

सर्वांगासन से लाभ:

  • सर्वांगासन से सम्पूर्ण शरीर में रक्त का संचार एवं शक्ति का प्रादुर्भाव होता है।
  • वृद्धावस्था से पड़ने वाली झुर्रियाँ ठीक होने लगती हैं।
  • स्मरण शक्ति विकसित होने लगती है।
  • मसूढ़ों और दाँतों की मजबूती बढ़ती है।
  • गर्दन, गला, सीना और उदर के विभिन्न अवयव स्वस्थ होते हैं।
  • विशुद्धि चक्र का विकास, चुल्लिका ग्रन्थि सक्रिय, रक्त शुद्धि, मस्तिष्क में प्रचुर मात्रा में रक्त का परिसंचरण होने से स्मृति का विकास होता है।
  • टॉन्सिल, दमा और खाँसी आदि के लिए यह आसन अत्यन्त उपयोगी है ।

विपरीत करणी मुद्रा सर्वांगासन के परिवार का ही आसन है। इस आसन में सीना और ठुड्डी में थोड़ा अन्तर रहता है। पीठ के बल लेटकर पैरों को सर्वांगासन की तरह ऊपर ले जाते हैं। हाथों को कटि भाग पर रखकर सहारा देते हैं। पैर सर्वांगसन की तरह सीधे नहीं रहकर पीछे की ओर टेढ़े रहते है। इसमें ठुड्डी सीने से नहीं लगी रहती। विपरीत करणी मुद्रा के गुण और लाभ सर्वांगासन के समान ही हैं।

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