Manav Sharir: साधना में स्वस्थ शरीर की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। स्वास्थ्य के लिए आसन एवं प्राणायाम आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य है। स्वस्थ शरीर ही हर परिस्थिति को सहन कर सकता है। सहने की क्षमता के बिना कोई भी व्यक्ति सिद्धि तक नहीं पहुँच सकता। आसन के अभ्यास से शरीर में स्थिरता आती है। स्थिरता से शरीर- सिद्धि, और शरीर-सिद्धि से ही दीर्घध्यान में उतरा जा सकता है। आसन – विजय को जागरूता की भूमिका बताया गया है। जागरूक व्यक्ति ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। प्रेक्षाध्यान साधना में ध्यान की उपलब्धि के लिए आसन-विजय महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। ध्यान को उपलब्ध करने वाले तत्व हैं- आसन-विजय, आहार- विजय, निद्रा-विजय। इन्हें जानने से पूर्व शरीर का परिचय प्राप्त करना अत्यधिक आवश्यक है।
मानव शरीर की व्याख्या (Manav Sharir Rachna)
मानव-शरीर अध्यात्म की प्रयोगशाला है। जगत् में कोई ऐसा आश्चर्यजनक यंत्र नहीं, जैसा कि यह मानव-शरीर (manav body) है। मनुष्य ने अनेकानेक यंत्रों का आविष्कार किया है। गाड़ी के चक्के से लेकर अन्तरिक्ष यान का निर्माण मनुष्य ने अपने बुद्धि-बल से किया है। मानव मस्तिष्क की भाँति सुपर-कम्प्युटर आज विविध कार्य कुशलता से कर रहा है। फिर भी मानव शरीर-रचना (human anatomy) की तुलना में विज्ञान बौना ही दिखाई देता है । शरीर के एक-एक अंग की रचना इतनी विचित्र और विलक्षण है कि उसे जान कर दाँतों तले अंगुली दबानी पड़ती है।
कोशिका विज्ञान (Cytology)
एक छोटी से छोटी कोशिका भी अपना स्वयं का विद्युत जेनरेटर रखती है, स्वयं किस तरह ऑक्सीजन लेती है? स्वयं के सदृश्य नवीन कोशिका को भी उत्पन्न करती है। विज्ञान कोशिका के आवरण के भीतर जीव द्रव्य को जानने का पूरा-पूरा प्रयत्न कर रहा है। इस सृष्टि में जीव द्रव्य केवल एक मात्र जीवित रासायनिक मिश्रण है। जीवित अवस्था के जीवाणु का विश्लेषण आज तक कोई नहीं कर सका है। विश्लेषण करने की कोशिश की जाती है तब उसके जीवन लक्षण नष्ट हो जाते हैं। जो शेष रह जाता है, उसमें 90 प्रतिशत जल, कार्बनिक यौगिक, प्रत्यामीन (नाइट्रोजन, कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन यौगिक) करा और वसा, कार्बन, ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन की विभिन्न मात्राओं वाले स्वतंत्र योगिक) पाए जाते हैं। ये जल में पूर्ण रूप से विलीन न होकर क्लोराईड के रूप में पाए जाते हैं। जिसके कारण जीव द्रव्य गाढ़ी जेली की भांति होता है। कार्बोनिक आदि निर्जीव होते हैं।
कोशिका की सूक्ष्मता का अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि सूक्ष्म कोशिका को देखने के लिए अणुदर्शी (इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप – electron microscope) की आवश्यकता होती है, जिसमें किसी वस्तु का आकार 300 से 2000 गुणा बड़ा होकर दिखाई देता है।
ये कोशिकाएँ (body cells) ही मिल कर शरीर की संरचना करती हैं। जिस प्रकार मकान में ईंट इकाई है, उसी तरह शरीर में कोशिका तद्नुरूप अस्तित्व रखती है। शरीर का प्रत्येक अवयव इन कोशिकाओं के जोड़ से बना है। जगत् के समस्त प्राणियों में यदि कोई समानता है तो वह यह है कि सभी के शरीर की संरचना कोशिकाओं के माध्यम से होती है ।
मानव शरीर की संरचना (Human Anatomy)
मनुष्य के स्थूल शरीर का जब निरीक्षण करते हैं तब सबसे ऊपर के भाग में सिर आता है, जिसके ऊपर बाल होते हैं। अस्थियों से निर्मित बन्द संदूक के भीतर वृहत्-मस्तिष्क और लघु-मस्तिष्क होता है, जो शरीर में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अवयव हैं। इनसे हम सोचते हैं या विचार करते हैं। मस्तिष्क ऐसा स्वत: संचालित कम्प्यूटर है, जो जीवन की प्रत्येक समस्या के संबंध में चिन्तन और मनन करता है। सिर के सामने का भाग, ललाट, चेहरा, नेत्र, नासिका, कपोल, मुख, दोनों कनपटियां और दोनों कानों के रूप में विभक्त रहता है।
मस्तक और मुख के नीचे ग्रीवा- यह सिर और शरीर के ढांचे के बीच महत्त्वपूर्ण भाग है। गर्दन के पीछे मेरुदण्ड होता है। जिसके ऊपर का भाग सुषुम्ना शीर्ष है। उसमें मेरुदण्ड (spinal cord) होता है। गले के भीतर ग्रास नली और श्वास नली होती है। धड़ का भाग कंधा, सीना, फेफड़ा, हृदय, मेरुदण्ड, उदर का भाग, गुर्दे, पेनक्रियाज का हिस्सा महत्त्वपूर्ण अंग है। फेफड़े श्वास-प्रश्वास के माध्यम से रक्त को शुद्ध कर हृदय में पहुंचाते हैं। हृदय शरीर का एक छोटा-सा अंश है, जो 200 ग्राम मांस का एक छोटा-सा थैला है। यह लम्बाई में 14 से.मी. और चौड़ाई में 9 से.मी. है। शरीर में फैली हुई साढ़े तीन लाख लम्बी रक्त नलिकाओं में यह 500 कनस्तर रक्त को, जीवन भर 24 घंटे भेजता रहता है। बड़े से बड़ा पम्प सेट इतना कार्य करे तो दो दिन में ठंडा हो जाए, किन्तु हृदय की रचना इस तरह होती है कि जीवन भर कुशलता से वह अपना कार्य करता रहता है।
एक पैसे के सिक्के जितनी छोटी सी आँख में एक करोड़, बीस लाख और सत्तर हजार कोशिकाएँ हैं तथा दस लाख नर्व वाली ऑप्टिक नर्व है, जो देखा हुआ दृश्य प्रतिक्षण प्रतिबिम्ब के रूप में आँखों के माध्यम से मस्तिष्क तक भेजती है। ये पहचान व निर्णय इतनी शीघ्रता से करके वापस सूचना भेजती है कि कल्पना करना ही कठिन है। शरीर के कार्यों की विलक्षणता अपने आप में विचित्र है।
विभिन्न वैज्ञानिक शोधों के आधार पर प्रतिदिन प्रत्येक व्यक्ति 24 घंटे में 450 घन फुट शक्ति तैयार करता है। वह 4800 शब्द बोलता है, 750 माँसपेशियों को उपयोग में लाता है। हम 70,00,000 मस्तिष्क कोशिकाओं को व्यायाम देते हैं, डेढ़ कि.ग्रा. पानी पीते हैं, 1.43 पॉइण्ट पसीना निकालते हैं, 85.6 सें. ग्रेड ताप छोड़ते हैं, 438 घन फुट हवा श्वास से लेते हैं । 23,040 मील श्वास प्रश्वास करते हैं। रक्त 16,80,00,000 मील यात्रा करता है। हृदय 103,680 बार धड़कता है।
मानव शरीर व आसन-विजय (Manav Sarir Evam Asan Vijay)
फिर भी उसमें जो महत्त्वपूर्ण है, वह यह कि शरीर केवल हाड़-मांस का पुतला ही नहीं है बल्कि चैतन्यमय अमृत पिण्ड है। चैतन्य जागृति के द्वारा इस शरीर से मुक्त होकर कोई भी आत्मा से परमात्मा बन सकता है। आत्मा और परमात्मा क्रमश: बीज और वृक्ष के सामान हैं। जिस प्रकार बीज में वृक्ष छुपा रहता है, उसी प्रकार आत्मा में परमात्मा शक्ति छिपी रहती है। साधना के द्वारा हम इसे अभिव्यक्त करने का प्रयत्न करते हैं। यही है – परमयात्रा और धर्म (Dharma) । यही है अपने आप की खोज । स्थूल शरीर ही यदि समझ में नहीं आया तो परमात्मा की पहचान कैसे होगी ? शरीर की सम्यक् पहचान के बाद ही उसमें विराजित चेतना को समझ पाएंगे। चेतना का जागरण ही प्रेक्षाध्यान (prekshadhyan), परमसिद्धि, समाधि (samadhi) और आनन्द है । परमात्मा-शक्ति को प्राप्त करने के लिए कार्य-सिद्धि आवश्यक है। कार्य-सिद्धि के लिए आसन-विजय आवश्यक है।