जितिया (Jitiya) या जिउतिया (jiwitputrika) एक त्यौहार ही नहीं बल्कि माँ और उनके बच्चो के बीच के गहरे सम्बन्ध को दर्शाता हुआ पर्व है। जितिया त्योहार के माध्यम से मां के प्यार, विश्वास, और आशीर्वाद की दिव्यता प्रकट होती है, जो एक माँ की अपने सन्तानो के लिए गहरी श्रद्धा दिखता है।
जितिया (Jitiya) की उत्पत्ति और ऐतिहासिक महत्व
जितिया त्योहार की उत्पत्ति को पुराने भारतीय ग्रंथों महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों से जोड़ा जाता है, जहां मातृत्व के आदर्शों और उनकी भूमिका को उच्च दर्जा दिया जाता था। समय के साथ, इन आदर्शों को जितिया ने जोड़े रखा है।
जितिया (Jitiya) – विश्वास और परंपराएँ
जितिया (Jitiya) एक ऐसा त्योहार है जो उपवास, प्रार्थना, और माँ का बच्चो के प्रति लगाव का प्रदर्शन करता है। इस पर्व में मायें अश्विन मास (सितम्बर – अक्टूबर) के कृष्ण पक्ष के अष्टमी को सूर्योदय से चाँद्रोदय तक उपवास करती हैं, औरअपने बच्चों के सर्वांगीण कल्याण के लिये पूजा करती हैं। उपवास नवमी के दिन खोला जाता है।
इस अवधि के दौरान, मां अपने बच्चों की दीर्घायु, भलाइयों और समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं। यह माना जाता है कि इस उपवास को और जितिया के रस्मों का पालन करने से उनके बच्चों के लिए सुखद और सानंद जीवन सुनिश्चित करता है।
जितिया ऐतिहासिक रूप और प्रभाव
जितिया की गहरी ऐतिहासिक जड़ें हैं। यह त्योहार कई प्राचीन ग्रंथों और शास्त्रों में उल्लिखित है, जो इसकी सांस्कृतिक महत्व को मजबूत करते हैं। इसमें स्थानीय परंपराओं को शामिल करने के बाद यह एक जीवंत और विविध उत्सव बन गया है।
जितिया कथा और महाभारत कालीन सम्बन्ध (Jitiya katha in Hindi)
जितिया की जड़े महाभारत काल से भी मिलती हैं। एक ऐसी ही कथा (Jitiya ki katha) रानी जीती और भगवान कृष्ण के सम्बन्ध में है।
रानी जिति की कथा
जितिया त्योहार की कहानी रानी जिति के चारों ओर बुनी गई है, जो राजा नल की प्रिय रानी थीं। रानी जिति भगवन कृष्ण की परम भक्त थीं, और उनकी भक्ति ने उनके नाम को अद्वितीय बना दिया।
कहते हैं कि, एक दिन, रानी जिति ने भगवान कृष्ण को खुश करने के लिये एक कठिन उपवास करने का निर्णय लिया। उन्होने ने निर्जला व्रत करने का संकल्प लिया और बिना कुछ खाये पीये उपवास किया।
भगवान् कृष्ण का प्रकट होना
रानी जिति की अद्वितीय भक्ति और उनके निर्जला उपवास को देखकर भगवान कृष्ण को ने रानी जीति को अपने दर्शन दिये। यह रानी जिति के अद्वितीय विश्वास के साथ-साथ, उनके समर्पण का ही फल था कि भगवान कृष्ण रानी जिति के सामने प्रकट हुए और उन्हें एक वरदान देने का निर्णय लिया।
रानी जिति ने निःस्वार्थ भाव से सभी माताओं के सभी बच्चों की खुशियों और समृद्धि की प्राप्ति के लिए उनसे वरदान माँगा। भगवन कृष्ण ने उनको आशीर्वाद दिया और इस दिन से ही जितिया का त्योहार, मातृत्व के प्रति भक्ति और आशीर्वाद के साथ – साथ हमारे समाज का हिस्सा बन गया।
आज के समय जितिया त्योहार का महत्व
आज की तेज गति वाली दुनिया में, जितिया एक मां और उनके बच्चों के बीच एक अद्वितीय बंधन का प्रतीक मात्रा नहीं है, बल्कि यह मां और उनके बच्चों के बीच वह दैवीय रिश्ता है जो भगवान को सामने प्रकट करने की क्षमता रखता है। यह त्योहार परिवार, परंपरा, और मां के प्यार के महत्व को याद दिलाने के रूप में कार्य करता है, और एक मां की भूमिका को उसके बच्चों के जीवन में महत्वपूर्ण बनाता है।
जितिया कैसे मानते हैं ?
जितिया मुख्यतः भारतीय राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में मनाया जाता है, जहां यह लोगों के दिलों में एक ख़ास जगह रखता है। परिवार और समाज के सभी सदस्य (खासकर महिलायें) एक साथ उपवास और प्रार्थना करते हैं, और अपने बच्चों के भविष्य के लिए आशीर्वाद चाहते हैं। नेपाल में, खासकर पश्चिम बंगाल के नेपाली समुदाय में उत्सव का बड़ा उत्साह देखा जाता है।
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निष्कर्ष
आज जितिया पर्व मातृ प्रेम, भक्ति और आशीर्वाद की इसी विरासत को आगे बढ़ाता है। माताएँ अपने बच्चों के लिए दैवीय सुरक्षा और समृद्धि की कामना करते हुए उपवास, प्रार्थना और अनुष्ठान करती हैं। यह त्यौहार एक माँ और उसके बच्चे के बीच के स्थायी बंधन के प्रतीक के रूप में खड़ा है, यह बंधन इतना मजबूत है कि यह स्वर्ग को हिला सकता है और दिव्य आशीर्वाद का आह्वान कर सकता है।