रानीगंज के खदानसमृद्ध क्षेत्र में, एक कहानी है जहां एक व्यक्ति की अटल दृष्टि और तेज सोच ने पृथ्वी के गर्भ में घिरे हुए 65 कोयला खदान कर्मचारियों की जान बचाई। यह अंजाने हीरो, जसवन्त सिंह गिल (Jaswant Singh Gill), उस दिन पौरुष और स्वाभिमान का प्रतीक बन कर उभरे। इस लेख में हम जसवन्त सिंह गिल के जीवन, उनके योगदान, और रानीगंज के कोयला खदानों में हुए घटी घाटनाओ को समझेंगे।
जसवन्त सिंह गिल का प्रारम्भिक जीवन और परिचय
जसवन्त सिंह गिल का जन्म अमृतसर के एक गांव सठिआला में २२ नवंबर १९३७ को एक आम परिवार में हुआ था। उन्हें मेहनत, सहनुभूति और वीरता जैसे गुणों की मूल शिक्षा दी गई, जो उनके जीवन की यात्रा को निर्देशित किया। समाज के प्रति एक गहरी जिम्मेदारी का भाव उनके मन में भर गया, जिसके परिणमस्वरूप उन्होंने कोयला उद्योग में एक करियार चुना।
रानीगंज कोयला खदान आपदा
घाटना रानीगंज, पश्चिम बंगाल के महाबीर कोलियरी में 13 नवंबर 1989 को घटित हुई थी,। कोयला निकालने के लिए कर्मचारी बिना थके ब्लास्ट का इस्तमाल कर रहे थे। उन्हें इस बात का पता नहीं था कि खदान के नीचे जल स्तर का अत्यधिक दबाव बना हुआ है। एक ब्लास्ट के साथ ही निचे की भूमि फट गयी और जल स्तर ऊपर आने लगा जिससे खदान में पानी भरना शुरू हो गया और वो सुरंग ढह गया जिसमे २२० खनिक कार्य कर रहे थे।
सुरंग ढहने से अफरा-तफरी मच गई और 220 खनिकों की जान खतरे में पड़ गई। दुखद रूप से, छह लोगो ने अपनी जान गंवा दी, जबकि 65 लोगों के लिए एक दर्दनाक और अनिश्चित प्रतीक्षा शुरू हुई जो खदान के भीतर फंसे रहे। 65 खनिक अंदर ही अंदर फंसे हुए थे, उनके बचने का कोई रास्ता नहीं था, उनके बचने की संभावना बहुत कम थी और फंसे हुए खनिकों के दिलों में डर बैठ गया था।
जसवन्त सिंह गिल के अदभुत प्रयत्न (Jaswant Singh Gill Miracle Effort)
अराजकता और हताशा के बीच, पारंपरिक बचाव के तरीके विफल हो रहे थे। इस स्थिति में जसवन्त सिंह गिल के तेज दिमाग और अदभुत साहस ने वो काम कर दिया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। गिल ने एक कुआँ खोदने और साइट पर विशेष रूप से डिजाइन किए गए स्टील रेस्क्यू कैप्सूल को उपयोग करने का साहसिक विचार प्रस्तावित किया। इस नये दृष्टिकोण ने फंसे हुए खनिकों के जीवित रहने की उम्मीद जतायी।
क्रेन की मदद से खतरनाक ऑपरेशन शुरू हुआ. एक-एक करके सभी 65 खनिकों को नीचे खाई से सफलतापूर्वक बचा लिया गया। जसवन्त सिंह गिल की अटूट प्रतिबद्धता और नेतृत्व ने प्रत्येक खनिक की सतह पर सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की। उनकी बहादुरी ने इन व्यक्तियों को जीवन का दूसरा मौका दिया और यह घटना आशा और निस्वार्थता के प्रतीक के रूप में आज भी जीवंत है।
सम्मान और प्रशंसा
जसवन्त सिंह गिल का वीर गाथा सफल नहीं हुई। रानीगंज कोयला खदान के श्रमिकों के बचाव प्रयास में उनके अतुलनीय योगदान ने उन्हें सम्मान और पुरस्कार दिलाया। रानीगंज कोयला खदानों में उनके कार्यों ने उन्हें प्रतिष्ठित “भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) वीरता पुरस्कार” दिलाया। उन्हें 1991 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमन द्वारा ‘सर्वोत्तम जीवन रक्षा पदक’ से भी सम्मानित किया गया था। यह सम्मान विपरीत परिस्थितियों में उनकी असाधारण वीरता का प्रमाण था।
जसवन्त सिंह गिल के कार्य, उनकी अदभुत कथा आज भी इस बात की याद दिलाते हैं कि नायक अक्सर चुपचाप असाधारण कार्य करते हुए हमारे बीच से गुजरते हैं।