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आर्थिक या वित्तीय आपातकाल (Financial emergency) क्या है? अनुच्छेद 360 से इसका क्या सम्बन्ध है?

आज जबकि भारत COVID-19 महामारी से जूझ रहा है, चारों ओर वित्तीय और आर्थिक खतरे मंडरा रहे हैं। सरकार ने विभिन्न आर्थिक योजनाएं की घोषणा की है, जैसेकि रु 1.70 लाख करोड़ का राहत पैकेज, करों को भरने के लिए तारीखों का विस्तार करना, स्वास्थ्य ढांचे के लिए 15,000 करोड़ रुपये प्रदान करना, बैंक खातों में कुछ न्यूनतम शेष राशि बनाए रखने की आवश्यकता को पूरा करना, इत्यादि। राज्य सरकारों ने भी वित्तीय पैकेज पेश किए हैं। इसके साथ ही, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने इन्सॉल्वेंसी एंड दिवालिएपन, MSME’s इत्यादि के मानदंडों में ढील दी है।

इसके कारण आज देश में आभास हो रहा है की कहीं पहली बार देश में वित्तीय आपातकाल तो लागू नहीं हो जायेगा। हालांकि, सरकारी रिपोर्टों के अनुसार वित्तीय आपातकाल लगाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है।

वित्तीय आपातकाल या आर्थिक आपातकाल क्या है?

संविधान के अनुच्छेद 360 में वित्तीय आपातकाल के रूप में प्रावधान की व्याख्या की गयी है। इसके तहत जब राष्ट्रपति को विश्वास हो जाये की देश में आर्थिक संकट आ गया है, तो राष्ट्रपति वित्तीय आपात की घोषणा कर सकते हैं।

अनुच्छेद 360 के अनुसार आर्थिक आपातकाल की स्थिति में आम नागरिकों के पैसों एवं संपत्ति पर देश का अधिकार हो जाएगा।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 में वित्तीय आपातकाल का प्रावधान वर्णित है, जो निम्नलिखित है:

(1) यदि राष्ट्रपति संतुष्ट हो जाता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिससे भारत की वित्तीय स्थिरता या उसके किसी भी हिस्से के लिए खतरा पैदा हो गया है, तो वह एक घोषणा द्वारा उस प्रभाव की घोषणा कर सकता है

(2) खंड 1 के तहत जारी उद्घोषणा 

(क) किसी पश्चात्‌‌वर्ती उद्घोषणा द्वारा रद्द या विविध हो सकता है;

(ख) संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा;

(ग)  दो महीने की समाप्ति पर काम करना बंद कर देगा यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले संसद के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर दिया जाता है: 

बशर्ते यदि ऐसी कोई उद्‍घोषणा उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन हो गया है या लोकसभा का विघटन उपखंड (ग) में निर्दिष्ट दो मास की अवधि के दौरान हो जाता है और यदि उद्‌घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया है, किन्तु ऐसी उद्‌घोषणा के संबंध में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अवधि की समाप्ति से पहले पारित नहीं किया गया है तो उद्‌घोषणा उस तारीख से, जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात्‌ प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्‍घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है।

(3) उस अवधि के दौरान, जिसमें खंड (1) में उल्लिखित उद्‍घोषणा प्रवृत्त रहती है, संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को वित्तीय औचित्य संबंधी ऐसे सिद्धांतों का पालन करने के लिए निदेश देने तक, जो निदेशों में विनिर्दिष्ट किए जाएँ, और ऐसे अन्य निदेश देने तक होगा जिन्हें राष्ट्रपति उस प्रयोजन के लिए देना आवश्यक और पर्याप्त समझे।

(4) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी:

(क) ऐसे किसी निदेश के अंतर्गत:

(i) किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी या किसी वर्ग के व्यक्तियों के वेतनों और भत्तों में कमी की अपेक्षा करने वाला उपबंध;

(ii) धन विधेयकों या अन्य ऐसे विधेयकों को, जिनको अनुच्छेद 207 के उपबंध लागू होते हैं, राज्य के विधान-मंडल द्वारा पारित किए जाने के पश्चात्‌ राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखने के लिए उपबंध, हो सकेंगे;

(ख) राष्ट्रपति, उस अवधि के दौरान, जिसमें इस अनुच्छेद के अधीन की गई उद्‍घोषणा प्रवृत्त रहती है, संघ के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी या किसी वर्ग के व्यक्तियों के, जिनके अंतर्गत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश हैं, वेतनों और भत्तों में कमी करने के लिए निदेश देने के लिए सक्षम होगा।

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