प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व वाला नगर है। इसे हिंदू धर्म में तीर्थराज (तीर्थों का राजा) कहा जाता है, क्योंकि यह गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के पवित्र संगम स्थल पर स्थित है। प्रयागराज न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी काफी समृद्ध है।
प्रयागराज का प्राचीन इतिहास
प्रयागराज का उल्लेख ऋग्वेद, महाभारत, रामायण और पुराणों में मिलता है। इसे प्रयाग कहा जाता था, जिसका अर्थ है “यज्ञों की भूमि”। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, सृष्टि की रचना से पहले ब्रह्मा जी ने यहाँ यज्ञ किया था, जिससे यह स्थान अत्यंत पवित्र माना जाता है।
महाभारत काल में, पांडव अपने वनवास के दौरान प्रयागराज आए थे और यहाँ संगम में स्नान किया था। गुप्त काल (4वीं-6वीं शताब्दी) में यह क्षेत्र ज्ञान और सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बन गया था।
मुगल काल के दौरान, इस क्षेत्र को विशेष महत्व मिला और इसे एक नए नाम से पहचाना जाने लगा।
प्रयागराज का नाम “इलाहाबाद” कैसे पड़ा?
सन् 1583 में, मुगल सम्राट अकबर ने प्रयाग के पवित्र क्षेत्र में एक नया किला बनवाया और इसे इलाहाबास (Ilahabas) नाम दिया, जिसका अर्थ है “अल्लाह का स्थान”। बाद में, यह नाम इलाहाबाद (Allahabad) बन गया।
अकबर ने इसे प्रशासनिक और सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण केंद्र बनाया, और इसके बाद इलाहाबाद मुगल साम्राज्य की एक प्रमुख बस्ती के रूप में विकसित हुआ।
ब्रिटिश शासन के दौरान भी इलाहाबाद को विशेष महत्व मिला। 1858 में, यहीं पर भारत सरकार अधिनियम की घोषणा की गई थी, जिससे ब्रिटिश शासन को मजबूती मिली। इसके अलावा, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी इलाहाबाद का बड़ा योगदान रहा।
प्रयागराज नाम की पुनर्स्थापना (Restoration of the sacred name Prayagraj)
2018 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने इस ऐतिहासिक शहर का नाम पुनः प्रयागराज कर दिया। इस नाम परिवर्तन के पीछे मुख्य कारण यह था कि प्रयागराज मूल रूप से हिंदू धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है, और “प्रयाग” का उल्लेख हजारों वर्षों से हिंदू ग्रंथों में मिलता है।
सरकार का तर्क था कि अकबर द्वारा दिया गया नाम “इलाहाबाद” इस क्षेत्र के प्राचीन और धार्मिक पहचान को बदलने के उद्देश्य से रखा गया था। इसलिए, पुनः प्रयागराज नाम देकर इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को बहाल किया गया।
संगम (Sangam): तीन पवित्र नदियों का मिलन स्थल
प्रयागराज में स्थित त्रिवेणी संगम हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र स्थल है, जहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों का संगम होता है। यह स्थान धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। गंगा अपनी स्वच्छता और तेज प्रवाह के लिए जानी जाती है, यमुना का जल अपेक्षाकृत शांत और गहरा होता है, जबकि सरस्वती नदी अदृश्य रूप में यहाँ प्रवाहित मानी जाती है। मान्यता है कि संगम में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ और अर्धकुंभ मेलों के दौरान यहाँ करोड़ों श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं। इसके अलावा, कई ऋषि-मुनियों ने संगम क्षेत्र में तपस्या की थी, जिससे यह स्थान और भी दिव्य और महत्वपूर्ण बन जाता है।
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प्रयागराज और कुंभ मेला
प्रयागराज कुंभ मेले के लिए विश्व प्रसिद्ध है। हर 12 वर्ष में एक बार यहाँ महाकुंभ का आयोजन होता है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु संगम में स्नान करने आते हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार, कुंभ मेले में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कुंभ मेले का महत्व
- हिंदू धर्म के अनुसार, देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत कलश निकला, तो उसकी कुछ बूंदें प्रयागराज के संगम में भी गिरीं।
- इसी कारण से, कुंभ मेले का आयोजन संगम के किनारे किया जाता है।
- 2019 में प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले को संयुक्त राष्ट्र (UNESCO) ने भी सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी थी।
कुंभ मेला चार पवित्र शहरों- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है। यह अलग-अलग अंतराल पर आयोजित किया जाता है:
- प्रयागराज (इलाहाबाद)
हर 12 साल में महाकुंभ, हर 6 साल में अर्ध कुंभ - हरिद्वार – गंगा तट
हर 12 साल में कुंभ मेला - उज्जैन – शिप्रा नदी तट
हर 12 साल में सिंहस्थ कुंभ - नासिक – गोदावरी नदी तट
हर 12 साल में कुंभ मेला
कुंभ मेले का विशेष आयोजन:
- महाकुंभ हर 144 साल (12 कुंभ चक्र) में प्रयागराज में ही आयोजित किया जाता है।
- अर्ध कुंभ हर 6 साल में प्रयागराज और हरिद्वार में ही आयोजित किया जाता है।
- सिंहस्थ कुंभ केवल उज्जैन में ही आयोजित होता है।
ये मेले ग्रहों और नक्षत्रों की विशेष स्थिति के आधार पर आयोजित किए जाते हैं और हिंदू धर्म में इनका विशेष आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व है।
महाकुंभ 2025: दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन
महाकुंभ 2025 प्रयागराज में 14 जनवरी (मकर संक्रांति) से 26 फरवरी (महाशिवरात्रि) तक आयोजित किया जा रहा है, जिसमें ~40 करोड़ श्रद्धालुओं के गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में पवित्र स्नान करने की उम्मीद है। हर 144 साल में आयोजित होने वाला यह पर्व महाकुंभ हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जिसमें संन्यासी, अघोरी, नागा साधु, संत और श्रद्धालु जुटते हैं।
शाही स्नान, धार्मिक अनुष्ठान, आध्यात्मिक प्रवचन और सांस्कृतिक कार्यक्रम इसकी विशेषताएँ हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान संगम में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। सुरक्षा, सफाई और यातायात प्रबंधन को लेकर विशेष तैयारियाँ की जा रही हैं, ताकि श्रद्धालु बिना किसी बाधा के इस महाआयोजन में भाग ले सकें।
महाकुंभ 2025 के महत्वपूर्ण रिकॉर्ड
- महाकुंभ 2025 में कई महत्वपूर्ण रिकॉर्ड स्थापित किए गए हैं। मकर संक्रांति के अवसर पर, एक ही दिन में लगभग 4 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान किया, जो एक नया कीर्तिमान है। Source: etvbharat.com
- इसके अतिरिक्त, महाकुंभ के दौरान चार गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाए गए: सबसे बड़ी ई-रिक्शा परेड, सबसे बड़ा नदी सफाई अभियान, आठ घंटे में सबसे अधिक हैंडप्रिंट पेंटिंग, और सबसे बड़ा समन्वित सफाई अभियान।source: timesnowhindi.com
- मौनी अमावस्या के दिन, महाकुंभ नगर दुनिया का सबसे बड़ा अस्थायी शहर बन गया, जहां 8 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान किया। source: hindi.moneycontrol.com
इन उपलब्धियों ने महाकुंभ 2025 को ऐतिहासिक बना दिया है।
प्रयागराज: एक धार्मिक और सांस्कृतिक तीर्थस्थल
- त्रिवेणी संगम: गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन स्थल, जो हिंदुओं के लिए पवित्रतम तीर्थस्थलों में से एक है।
- अकबर का किला: मुगल वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना, जो संगम के पास स्थित है।
- आनंद भवन: नेहरू परिवार का ऐतिहासिक निवास, जहाँ भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटीं।
- खुसरो बाग: मुगल शहजादे खुसरो का मकबरा, जो शानदार बागीचे से घिरा हुआ है।
- स्वरूप रानी अस्पताल: स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई क्रांतिकारियों का इलाज यहीं किया गया था।
कैसे पहुंचे प्रयागराज?
प्रयागराज भारत के प्रमुख शहरों से सड़क, रेल और हवाई मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
- रेल मार्ग: प्रयागराज जंक्शन देश के सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है, और यहाँ से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई आदि के लिए नियमित ट्रेनें उपलब्ध हैं।
- सड़क मार्ग: प्रयागराज उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों से जुड़ा है। लखनऊ, वाराणसी, कानपुर आदि से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है।
- हवाई मार्ग: प्रयागराज में एक घरेलू हवाई अड्डा है, जो दिल्ली, मुंबई और अन्य प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। निकटतम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा लखनऊ में स्थित है।
प्रयागराज के प्रसिद्ध व्यक्ति
प्रयागराज ने कई महान विभूतियों को जन्म दिया है, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम, राजनीति, साहित्य, कला और विज्ञान के क्षेत्र में योगदान दिया है।
- पंडित जवाहरलाल नेहरू: भारत के पहले प्रधानमंत्री, जो प्रयागराज में जन्मे और पले-बढ़े।
- डॉ. हरिवंश राय बच्चन: हिंदी साहित्य के महान कवि, जिन्होंने “मधुशाला” जैसी अमर रचना लिखी।
- महादेवी वर्मा: छायावाद युग की प्रसिद्ध कवयित्री, जिन्हें हिंदी साहित्य में अभूतपूर्व योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला।
- सुभद्रा कुमारी चौहान: स्वतंत्रता संग्राम की प्रसिद्ध कवयित्री, जिन्होंने “झाँसी की रानी” कविता लिखी।
- मोतीलाल नेहरू: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और नेहरू परिवार के प्रमुख सदस्य।
- ध्यानचंद: हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले महान खिलाड़ी।
- अमिताभ बच्चन: बॉलीवुड के महानायक, जिन्होंने प्रयागराज से अपनी पढ़ाई की।
निष्कर्ष
प्रयागराज न केवल एक धार्मिक तीर्थस्थल है, बल्कि इसका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व भी अतुलनीय है। यह स्थान आध्यात्मिक चेतना का केंद्र है और कुंभ मेला, त्रिवेणी संगम, एवं प्राचीन धार्मिक परंपराओं के कारण संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है।
नाम परिवर्तन के माध्यम से, प्रयागराज को उसकी प्राचीन पहचान, धार्मिक गौरव और सांस्कृतिक महत्व को पुनः प्राप्त करने का अवसर मिला है। यह शहर भारतीय संस्कृति और इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो आने वाले समय में भी श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता रहेगा।