जब किसी देश में बाहरी, आतंरिक या आर्थिक रूप में किसी तरीके के खतरे की आशंका हो तो वहाँ का संविधान उस देश की एकता, अखंडता, और सुरक्षा को बरक़रार रखने के लिए एक प्रावधान देती है, जिसे आपातकाल कहा जाता है।
आपातकाल की स्थिति में केंद्र सरकार के पास अत्यधिक शक्तियाँ होती है, जिसके बल पर वो खुद निर्णय ले सकती है और उसे अध्यादेशों (बिल) की जरूरत नहीं पड़ती है। ये शक्तियां उसे देश को आपातकालीन स्थितियों से बहार निकलने के लिए मिलती हैं।
भारत के संविधान में तीन तरीके के आपातकाल वर्णित हैं।
1. राष्ट्रीय आपात (National Emergency) – अनुच्छेद 352
2. राष्ट्रपति शासन या राज्य में आपात स्थिति (State Emergency) – अनुच्छेद 356
3. आर्थिक आपातकाल या वित्तीय आपातकाल (economic emergency)- अनुच्छेद 360
1. राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency) – अनुच्छेद 352
देश में राष्ट्रीय आपात का ऐलान काफी विकट परिस्थितियों में किया जाता है। इसकी घोषणा आतंरिक युद्ध, बाहरी आक्रमण और राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे के आधार पर किया जाता है। इस आपातकाल के दौरान सरकार के पास तो सारे अधिकार आ जाते हैं, जिसके तहत वो कोई भी निर्णय ले सकती है। लेकिन इस दौरान, आम नागरिकों को दिए गए सारे अधिकार छीन लिए जाते हैं। राष्ट्रीय आपात (नेशनल इमरजेंसी) को मंत्रिमंडल (कैबिनेट) की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जाता है।
इस आपातकाल के दौरान संविधान में प्रस्तावित सारे मौलिक अधिकारों का अनुच्छेद 19 अपने आप निलंबित हो जाता है। लेकिन इस दौरान अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 अस्तित्व में बने रहते हैं। आपकी जानकारी के लिए अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 तक भारतीयों नागरिको को स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद 19 में 6 स्वतंत्रता के अधिकारों का वर्णन है:
19 (a) बोलने की स्वतंत्रता।
19 (b) शांतिपूर्वक बिना हथियारों के एकत्रित होने और सभा करने की स्वतंत्रता।
19 (c) संघ बनाने की स्वतंत्रता।
19 (d) देश के किसी भी क्षेत्र में आवागमन की स्वतंत्रता।
19 (e) देश के किसी भी क्षेत्र में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता।
19 (g) कोई भी व्यापार एवं जीविका चलाने की स्वतंत्रता।
2. राष्ट्रपति शासन या राज्य में आपातकाल (State Emergency) – अनुच्छेद 356
इस आपातकाल में संविधान के अनुच्छेद 356 के अधीन केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर राजनीतिक संकट के मद्देनज़र, राष्ट्रपति महोदय संबंधित राज्य में आपातकाल की स्थिति की घोषणा कर सकते हैं। किसी राज्य की राजनैतिक और संवैधानिक व्यवस्था के विफल होने की स्थिति में केंद्र सरकार राष्ट्रपति के समक्ष विधान सभा भंग करने की प्रस्तावना लाती है, तब ही राष्ट्रपति शासन लागू होता है। इस स्थिति में राज्य के सिर्फ़ न्यायिक कार्यों को छोड़कर केंद्र के पास सारे प्रशासन अधिकार होते हैं। इस आपातकाल की अवधि न्यूनतम 2 माह और अधिकतम 3 साल तक हो सकती है।
3. आर्थिक आपातकाल या वित्तीय आपातकाल (Economic/Financial emergency)
वैसे तो आर्थिक या वित्तीय आपातकाल भारत में अब तक लागू नहीं हुआ है। लेकिन संविधान के अनुच्छेद 360 में वित्तीय आपातकाल के रूप में प्रावधान की व्याख्या की गयी है। इसके तहत जब राष्ट्रपति को पूर्ण रूप से विश्वास हो जाये की देश में आर्थिक संकट आ गया है या केंद्र दिवालिया होने की कगार पर आ गयी है, तो माननीय राष्ट्रपति वित्तीय आपात की घोषणा कर सकते हैं।
इस अनुच्छेद के अनुसार आर्थिक आपातकाल की स्थिति में आम नागरिकों के पैसों एवं संपत्ति पर भी देश का अधिकार हो जाएगा। राष्ट्रपति किसी भी कर्मचारी के वेतन को भी कम कर सकता है।
आज COVID-19 के कारण भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त होने की कगार पर आ गयी है , तब इस वित्तीय आपात के अनुच्छेद का प्रयोग अगर पहली बार देश में हो जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।