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Shankh Prakshalan: शंख प्रक्षालन विधि, सावधानी एवं लाभ

Shankh Prakshalan: जिस प्रकार शंख में पानी डाल कर उसे स्वच्छ किया जाता है उसी प्रकार बड़ी आँत की सफाई करने और कब्ज मिटाने का शंख प्रक्षालन उत्तम तरीका है।

शंख प्रक्षालन के दूसरे नाम : शंख प्रक्षालन इन नामों से भी जाना जाता है।

Conch cleansing (कोंच क्लींजिंग), master cleansing (मास्टर क्लींजिंग)

Table of Contents

शंख प्रक्षालन क्या है? (What Is Shankh Prakshalana)

शंख प्रक्षालन एक यौगिक क्रिया है। ‘शंख प्रक्षालन’ के अद्भुत शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य लाभ हो सकते हैं। लघु शब्द का अर्थ छोटा होता है, लेकिन यह पेट और आंतों की पूरी सफाई करता है। पूर्ण शंख प्रक्षालन एक अधिक गहन संस्करण है लेकिन हम यहां उसमें नहीं जाएंगे और सिर्फ लघु शंख प्रक्षालन के बारे में चर्चा करेंगे। ‘शंख’ शब्द का अर्थ है ‘शंख’ और ‘प्रक्षालन’ शब्द का अर्थ है ‘पूरी तरह से धोना’। यह प्रक्रिया समुंद्री शंख धोने की नकल है। यह मुंह से गुदा तक पूरी आहार नली को साफ करने की प्रक्रिया है।

शंख प्रक्षालण क्यों और कैसे काम करता है? (Why Shankh Prakshalana in Hindi)

जैसा कि आप जानते हैं कि आंतें कई घुमावदार मोड़ों के साथ साथ बहुत लंबी भी होती हैं, इसलिए भोजन के छोटे टुकड़ों का आंतो में फंसना एक आसान सी बात है। लंबे समय तक अटका रहने से यह सड़ना शुरू हो जाता है और फिर यह शरीर के लिए जहरीला हो जाता है। लघु शंख प्रक्षालन इन विषाक्त पदार्थों को आंतों से निकालने और अन्य लाभों के लिए किया जाता है।

घेरंडसंहिता में इस शोधन क्रिया को इस तरह से दर्शाया गया है।

आकण्ठं पूरयेद्वारि वक्त्रेण च पिबेच्छनैः।

चालयेदुदरेणैव चोदराद्रेचयेदधः।।

वारिसारं परं गोप्यम्—।। -घे-सं-1/17-18

अर्थात,  एक ऐसा विशेष योग व्यायाम, जिसमें जल को आंतों से गुजारा जाता है और मल के द्वारा इसका विसर्जन किया जाये, जिससे आंतों की गंदगी दूर हो जाती है।

शंख प्रक्षालन का स्वास्थ्य पर प्रभाव (Health impact of Shankh Prakshalana)

शरीर एक यंत्र है। प्रतिक्षण कुछ न कुछ टूट-फूट होती है। टूट-फूट का कचरा गुर्दे आदि से शुद्ध होकर शरीर में चला जाता है। शेष कैथरा शरीर से पेशाब आदि द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। इस तरह शरीर के यंत्रों की प्रक्रिया चलती है। अनावश्यक तत्व शरीर से बाहर निकलते रहने के बावजूद अंश इधर-उधर आँतों से चिपका रह जाता है। मल अथवा विजातीय तत्व शरीर में बढ़ने से रोग उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है। इस विजातीय तत्व और मल को बाहर निष्काति करने के लिए शंख प्रक्षालय क्रिया महत्वपूर्ण है। बड़ी आँत शंख के आकार की है, अत: इसे शंख कहा गया है। शंख प्रक्षालन की क्रिया से मुख से लेकर मलद्वार तक के भाग को शोधित किया जाता है। शोधन की इस प्रक्रिया में के मुख से मल द्वार तक के विभिन्न अवयव पानी पी कर शोधित किए जाते हैं। मुख से लेकर समस्त अवयवों का मल दूर होता है। 

शंख प्रक्षालन की विधि (Shankh Prakshalana Method)

शंख प्रक्षालन के पहले की तैयारी

  • सुनिश्चित करें कि आपके पास शौचालय की सुविधा उपलब्ध है
  • 3-4 लीटर (12-16 गिलास) पानी की तैयारी करें (इसका उल्लेख नीचे  दिया गया है )। कुछ लोग इससे अधिक और कुछ लोग कम कर सकते हैं। इसे पीना काफी मुश्किल है लेकिन प्रक्रिया ठीक से काम करे इसके लिए कम से कम 1-1.5 लीटर पीने की कोशिश करें।
  • आपको कुछ बिना मसाले वाला और आसानी से पचने वाला खाना चाहिए। परंपरागत रूप से यह चावल और मूंग दाल से थोड़ी हल्दी और थोड़े से घी के साथ बनाई जाने वाली ‘खिचड़ी’ होगी। लेकिन सादा दलिया जैसा कुछ भी ठीक रहेगा (आप जहां रहते हैं वहां क्या उपलब्ध है इसके आधार पर)।

शंख प्रक्षालन के लिये पानी की तैयारी

पीने लायक गर्म पानी 3-4 लीटर लेकर, जो पानी को पीने लायक नमकीन कर दे उतना ही नमक मिलाएँ। उच्च रक्तचाप वाले नमक ना मिलायें, वो सिर्फ सादा एवं गुनगुना पानी प्रयोग में लायें।

शंख प्रक्षालन के लिए तीन प्रकार के जल की तयारी

क) नीम्बू एवं सेंधा नमक वाला जल : यह जल सिर्फ वही लोग उपयोग में लाये जीन्हें वात, कफ या उच्च रक्तचाप की समस्या नहीं हो। बाकि कोई भी स्वस्थ व्यक्ति इसे उपयोग में ला सकते हैं।

ख) सिर्फ सेंधा नमक वाला जल : वात रोगी (जैसे जोड़ो में दर्द, गठिया, सूजन, स्पॉन्डिलाइटिस इत्यादि) से ग्रसित लोगो तथा कफ से ग्रसित लोगो को सिर्फ सेंधा नमक वाला जल उपयोग में लाना चाहिए।

ग) सिर्फ नीम्बू मिला जल : वैसे व्यक्ति जिन्हे चर्म रोग हो या जो उच्च रक्तचाप के मरीज हो, उन्हें सिर्फ नीम्बू मिला पानी उपयोग में लाना चाहिए।

पानी पीने की विधि

पानी पीने की सही विधि है, कागासन (crow pose or kagasana) में बैठकर पानी पीना। जो लोग कागासन में नहीं बैठ सकते हैं (घुटनो इत्यादि की समस्या के कारण) तो भी पानी बैठकर पिये। खड़े होकर पानी पीना वर्जित है। एक बार में १ से १.५ लीटर पानी पीने की कोशिश करें। 

Kaagasana (Crow-Pose)
कागासन or Kagasna (Crow Pose) – image source: Pixahive

शंख प्रक्षालन के लिये आसन (Yoga Asanas For Shankh Prakshalan)

पानी पीने के तुरंत बाद ही नीचे दिए गए आसनों का अभ्यास करें और सही क्रम में करें।

  1. ताड़ासन (Tadasana or Palm tree pose)
  2. त्रियक-ताड़ासन (Tiryak Tadasana or Swaying Palm Tree Posture)
  3. कटिचक्रासन (Kati chakrasana or Waist Twisting Posture)
  4. त्रियक भुजंगासन (Tiryak Bhujangasana or Swaying Cobra Posture)
  5. उदराकर्षणासन (Udarakarshansana or Abdominal Twisting Posture)

1. ताड़ासन  – ताड़ के पेड़ की मुद्रा

विधि: 

  • पैरों को कंधे के बराबर खोल ले। 
  • उंगलियों को गूंथ लें। 
  • श्वास भरते हुए बाजुओं को ऊपर उठाएं, पंजों के बल आ जाएं
  • साँस छोड़ते हुए, अपनी एड़ी और भुजाओं को नीचे लाएँ
  • ९ बार दोहराएं
tadasana
ताड़ासन (Tadasana or Palm Tree Pose) – Image source: Pixahive

2. तिर्यक ताड़ासन – ताड़ के पेड़ की झूलती हुई मुद्रा

विधि: 

  • पैरों को कंधे के बराबर खोल ले। 
  • उंगलियों को आपस में मिलाकर सिर के ऊपर ले आएं। 
  • साँस छोड़ते हुए और ऊपर देखते हुए अपने धड़ और भुजाओं को दाहिनी ओर लाएँ
  • श्वास भरते हुए केंद्र तक आएं और सीधे खड़े हो जाएं। 
  • यही क्रिया बायीं ओर से भी करें 
  • प्रत्येक पक्ष को ९ बार दोहराएं

3. कटि चक्रासन – कमर घुमाने वाला आसन

विधि: 

  • पैरों को कंधे के बराबर खोल ले। 
  • श्वास लेते हुए भुजाओं को सामने की ओर फैलाये 
  • साँस छोड़ते हुए, बाएँ हाथ को दाएँ कंधे पर और दाएँ हाथ को पीठ के पीछे ले जाएँ
  • फिर स्वास भरते हुए, केंद्र में आएं (आंखें सामने की ओर देखे लगे। )
  • यही क्रिया दूसरी तरफ से भी करें, मतलब साँस छोड़ते हुए, दाहिने हाथ को बाएँ कंधे पर और बाएँ हाथ को पीठ के पीछे ले जाएँ
  • प्रत्येक पक्ष को ९ बार दोहराएं

4. तिर्यक भुजंगासन – लहराते हुए कोबरा आसन

विधि: 

  • पेट के बल लेट जाएं, पैरों को कंधे के बराबर खोल ले और हाथों को अपनी पसलियों के बगल में जमीन पर रखें
  • श्वास लें, छाती को ऊपर उठाएं, अपनी कोहनी को अंदर और थोड़ा झुकाकर रखें
  • साँस छोड़ें, अपने दाहिने कंधे के ऊपर देखें
  • श्वास लें, सामने की ओर देखें
  • साँस छोड़ते हुए, बाएँ कंधे के ऊपर देखें
  • हर तरफ ९ बार दोहराएं
Bhujangasana Cobra-Pose
(Bhujangasana or Cobra Pose). Image source: Pixahive

5. उदराकर्षणासन – एब्डोमिनल ट्विस्टिंग पोस्चर (Abdominal twisting posture)

विधि: 

  • पैरों को कंधे के बराबर खोल ले करके उकडू अवस्था में बैठें। 
  • अपने दाहिने पिंडली को जमीन पर लाने के लिए अपना वजन बाईं ओर शिफ्ट करें और अपने हाथों को अपने घुटनों पर रखें
  • अपने हाथ का उपयोग बाएं घुटने को पूरे शरीर पर धकेलने के लिए करें और धड़ को चारों ओर घुमाएं और अपने बाएं कंधे के ऊपर देखें।
  • वापस बैठने की स्थिति में आ जाएं
  • यही क्रिया बाएं पिंडली के साथ दोहराएं।
  • हर तरफ ९  बार घुमाएं।
Udarakarshanasana (Abdominal twist yoga)
उदराकर्षणासन (Abdominal twist yoga). Image source: sarvyoga

 प्रत्येक की नौ-नौ आवृत्ति करें। पानी पीकर आसनों का पुनः क्रमशः प्रयोग करें। ऐसा तब तक करें जब तक शंका न हो। शंका होने पर तुरन्त मल विसर्जन करें। मल विसर्जन करते वक्त भी पेट को ऊँचे-नीचे करके दाएं-बाएं पैरों को घुमा कर आसन करें।

शौच हो जाने पर पुन: पानी पी कर उसी क्रम से आसन करें। शौच जाने पर जब शुद्ध पानी न निकले जब तक पानी पीकर पुनः आसन करें। जब शौच में साफ पानी निकलने लगे तक बिना नमक का गरम पानी पी कर क्रिया को बन्द कर दें । कुंजल क्रिया करें। जीभ की मूल गहराई में तीन अंगुलियाँ ले जाकर पानी को अमाशय से बाहर कर दें।

शंख प्रक्षालन में सावधानी (Precautions of Shankh Prakshalana)

  • इस क्रिया के बाद ठंडे पानी और ठंडी हवा से बचाव रखें। 
  • मूंग, चावल की खिचड़ी एवं घी के अतिरिक्त उस दिन कुछ न खाएं। 
  • खाते समय पानी न पीयें। 
  • शंख प्रक्षालन क्रिया के बाद आधा घंटे से अधिक देर तक भूखे न रहें। 
  • जिन लोगों को ब्लड प्रेशर, हर्निया, मिर्गी, हृदय रोग या बवासीर की समस्या हो उन्हें यह क्रिया नहीं करनी चाहिए और इसके लिए किसी विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए।
  • 24 घंटे तक दूध, दही आदि का सेवन निषेघ है।

शंख प्रक्षालन करने का सही समय (Right time to do Shankh Prakshalan)

शंख प्रक्षालन का यह प्रयोग मुख्य रूप से चैत्र या आश्विन मास मास में किया जाता है। ऋतु चक्र के अनुसार चैत्र और आश्विन मास समशीतोष्ण होते हैं। शरीर चक्र के अनुसार चैत्र और आश्विन मास में रक्त का शोधन होता है। चैत्र और आश्विन मास में छ: महीने का फासला है। वर्ष भर में दो बार शोधन, प्रक्षालन करने से, मल का शोधन हो जाने से, किसी प्रकार के रोग को उभरने का अवसर नहीं मिलता है। शंख प्रक्षालन से शरीर के दोष दूर होते हैं। योग के ऋषियों ने शंख प्रक्षालन की क्रिया द्वारा स्वास्थ्य को निरन्तर निरामय बनाये रखने का निर्देश दिया है। 

शंख प्रक्षालन का ग्रन्थियों पर प्रभाव (Effect of shankh prakshala on glands)

मल शोधन से सहज ही रक्त की शुद्धि होने लगती है। रक्त शोधन का ग्रन्थियों पर सहज प्रभाव पड़ता है। शंख प्रक्षालन में जिन पाँच आसनों का प्रयोग होता है वे अधिकत्तर बड़ी आँत को प्रभावित करने वाले आसन हैं। कुछ आसन कटि भाग एवं गर्दन को भी प्रभावित करते हैं। 

इन आसनों के प्रयोग के समय मुख्य रूप से दो ग्रन्थियां एड्रीनल और गोनाड्स प्रभावित होती हैं। गौण रूप से थायमस और थायरायड पर भी प्रभाव पड़ता है। एड्रीनल और गोनाड्स के स्रावों का संतुलन होने से व्यक्ति आक्रामक नहीं रहता। उसके आवेशों पर नियंत्रण होने लगता है। मनुष्य की ये दो मूलभूत समस्याएं हैं-आवेश और आवेग । आवेश से व्यक्ति क्रोधित होता है। क्रोधी व्यक्ति दूसरों पर आक्रमण करता है। दूसरों को नुकसान पहुंचाने के पहले पर वह स्वयं का नुकसान करता है।

आक्रामक वृत्ति मनुष्य को क्रूर बनाती है। क्रूरता से एड्रीनल के स्राव अधिक होते हैं। अधिक स्राव से भय, उद्दण्डता आदि बढ़ते हैं। यह ऐसा वर्तुल है कि व्यक्ति की उत्तेजित ग्रंथियां स्राव अधिक करेंगी और अधिक स्राव से उत्तेजना बढ़ेगी।

शंख प्रक्षालन से ग्रन्थियों के स्रावों में परिवर्तन प्रारम्भ होता है। भुजंगासन, स्कन्धासन से थायमस और थायरॉयड ग्रन्थियों पर प्रभाव पड़ने से उनके स्रावों में संतुलन बढ़ता है। शंख प्रक्षालन का प्रयोग मुख्यतया साधक के मलों के शोधन की दृष्टि से किया जाता है। इसे योग्य प्रशिक्षक के निर्देश अथवा साधना के दीर्घ कालीन अभ्यास पश्चात् ही करें।

शंख प्रक्षालन का लाभ (Shank Prakshalan Benefits in Hindi)

  • इस क्रिया से पेट और आँत के समस्त रोग ठीक होते हैं। 
  • सिर रोग, नेत्र रोग, चर्म रोग और पायरिया आदि में भी लाभदायक है। 
  • इस क्रिया से आँतों के घाव और सूजन आदि ठीक होती है। 
  • जनेन्द्रिय के विकार दूर होते हैं।

नोट: यह केवल एक विश्वसनीय जानकार शिक्षक के मार्गदर्शन में किया जाना चाहिए। यहां दी गई जानकारी अभ्यास से पहले से परिचित लोगों के लिए अभ्यास की समझ को गहरा करने में मदद करने के लिए है।

यह भी पढ़ें: आसनों एवं यौगिक क्रियाओं का वैज्ञानिक महत्व

Priya Singh
Priya Singhhttps://saralstudy.com/hindi/
प्रिया, महिलाओं के स्वास्थ्य, योग और ध्यान के बारे में लिखती हैं और जब वह काम नहीं कर रही होती हैं तो विभिन्न स्थानों की खोज करना और प्राकृतिक परिदृश्य पर क्लिक करना पसंद करती हैं। वह पांच साल से अधिक समय से उद्योग में हैं और उन्होंने विभिन्न बीमा कंपनियों और स्वास्थ्य स्टार्टअप के साथ काम किया है।
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