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Sanatan Dharma: वेद, उपनिषद, पुराण, श्रुति और स्मृति क्या है?

Sanatan Dharma: श्रुति और स्मृति क्या है? (Sruti aur Smriti kya hai)

श्रुति (Sruti):  श्रुति का अर्थ है ऐसी चीज जो परंपराओं के द्वारा आगे बढ़ी हो और जिसका कोई उद्गम स्थान पता ना हो  उदाहरण के तौर पर वेद और उपनिषद।

स्मृति (Smriti): स्मृति (मेमोरी) का अर्थ है किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा अपनी यादाश्त के बल पर लिखित। पीढ़ियों से सुने हुये ज्ञान और अनुभव को याद करके रखना स्मृति है। प्रमुख स्मृति शास्त्र हैं: वेदांग, उपवेद, उपंग, धर्म-सूत्र / शास्त्र, पुराण, रामायण, महाभारत आदि।

श्रुति और स्मृति में क्या अंतर है? (Sruti aur Smriti me antar)

मनुस्मृति के अनुसार  “श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो धर्मशास्त्रं तु वै स्मृतिः।”

अर्थात, श्रुति कहने से ‘वेद’ समझा जाना चाहिए, स्मृति कहने से ‘धर्मशास्त्र’ समझा जाना चाहिए। सरल शब्दों में श्रुति का अर्थ सुना गया और स्मृति का अर्थ याद रखा गया होता है।

वेद, उपनिषद, और पुराण (Ved, Upnishad, Puran)

वेद क्या हैं? Vedas Kya Hain?

वेद (vedas) एक ‘श्रुति’ है। ऐसा माना जाता है कि वेदों का ज्ञान परम पिता ने ऋषि / ऋषियों को दिया था। वेद परमात्मा के मुख से निकले हुए वाक्य हैं इसीलिए  इसीलिए वेदों को अपौरुषेय या अलौकिक कहा जाता है। वेदों के लेखक कोई ऋषि मुनि नहीं थे यह परमपिता के द्वारा उनको दिया गया ज्ञान था है। वेद शब्द संस्कृत के विद् शब्द से निकला है जिसका अर्थ होता है ‘जानना’ इसीलिए वेद ज्ञानग्रंथ कहलाते हैं।

चार वेद (four vedas) हैं:

  1. ऋग्वेद,
  2. यजुर्वेद,
  3. सामवेद, और
  4. अथर्ववेद।

प्रत्येक वेद को चार प्रमुख भागो में उप-वर्गीकृत किया गया है।

  1. संहिता (मंत्र)
  2. अरण्यक (अनुष्ठानों, समारोहों, और बलिदानों के बारे में )
  3. ब्राह्मण (कर्मकांड, समारोह और बलिदान पर टिप्पणी)
  4. उपनिषद (दर्शन और आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित ग्रंथ)
ऋग्वेद (Rigveda)

ऋग्वेद ‘ऋच्’ (जिसका अर्थ प्रशंसा होता है) और ‘वेद’ से मिलकर बना हुआ है। ऋग्वेद 10 पुस्तकों (दस मंडलों) का संग्रह है।संपूर्ण ऋग्वेद को आठ अष्टक में विभाजित किया गया है। हरेक अष्टक में 8 अध्याय हैं इस तरह संपूर्ण ऋग्वेद 64 अध्यायों में विभाजित है। 

ऋग्वेद में लगभग 1,028 वैदिक मंत्रों में 10,600 छंद है। इसके भजन मुख्य रूप से ब्रह्मांड विज्ञान और देवताओं की चर्चा करते हैं। 

संहिता के प्रत्येक मंत्र में ऋषि, देवता, छंद और विनियोग का उल्लेख है। ऋषि का तात्पर्य मंत्र के निर्माता या दृष्टा ऋषि से, देवता का अर्थ विषय है (यह देवता शब्द के वर्तमान प्रचलित अर्थ से बिल्कुल अलग है), छंद से तात्पर्य उस सांचे से हैं जिसमें वह मंत्र निर्मित है, तथा विनियोग का तात्पर्य है प्रयोग जो मंत्र समय-समय पर जिस जिस काम में आता रहा वही उसका विनियोग रहा। वैदिक मंत्रों का अर्थ समझने के लिए विषय अत्यंत आवश्यक है

यहाँ पीडीऍफ़ (PDF) में पढ़िए । साभार: संस्कृत साहित्य प्रकाशन

यजुर्वेद (Yajurveda)

सामान्यतया द्वितीय वेद के रूप में  मान्य यजुर्वेद की रचना ऋग्वेद के  मंत्रों  के मिश्रण से  हुई मानी जाती है, क्योंकि ऋग्वेद के 663 मंत्र यथावत यजुर्वेद में भी हैं।

ऐसा होने के बाद भी दोनों वेल एक नहीं है ऋग्वेद के मंत्र जहां पद्यत्त्मक हैं,  वही यजुर्वेद के गद्यत्मक हैं। इसके अलावा बहुत सारे मंत्र ऋग्वेद से अलग भी है।

यजुर्वेद को यज्ञ कर्मों से संबद्ध माना गया है। वास्तव में यजुर्वेद एक पद्धति ग्रंथ है जिसका संकलन यज्ञ आदि कर्म संपन्न कराने के लिए हुआ था। यज्ञ आदि कर्मों से संबंधित होने के कारण यजुर्वेद अधिक जनप्रिय रहा है।

 वैसे तो यजुर्वेद की 101 शाखाएं बताई गई है परंतु मुख्यतः दो शाखाएं ही प्रसिद्ध है – कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद,  जिन्हें क्रमशः  तैतरीय एवं वाजसनेयी संहितायें भी कहा जाता है। वैसे यह दोनों एक ही सामग्री है लेकिन उनके क्रम में कुछ अंतर है। शुक्ल यजुर्वेद अपेक्षाकृत अधिक क्रमबद्ध है और इसमें कृष्ण यजुर्वेद से ज्यादा मंत्र भी हैं।

यजुर्वेद यहाँ पीडीऍफ़ (PDF) में पढ़िए साभार: संस्कृत साहित्य प्रकाशन

सामवेद (Samved)

आमतौर पर सामवेद, ऋग्वेद के मंत्रों का संग्रह माना जाता है। छांदोग्य उपनिषद में कहा भी गया है जो ऋग् है वही साम है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि समस्त छंद ऋग्वेद से लिए गए हैं। सामवेद  की अनेक मंत्र ऋग्वेद से भिन्न है। विभिन्न दृष्टिकोण से देखने पर पता चलता है कि सामवेद के मंत्र ऋग्वेद से पूरी तरह नहीं लिए गए हैं। उनकी अपनी स्वतंत्र रचना है उतनी ही स्वतंत्र हैं जितने कि ऋग्वेद के मंत्र।

ऋग्वेद की तरह सामवेद से तत्कालीन समाज का और उसकी उन्नति का पता चलता है। चुकी सामवेद ऋग्वेद के बाद की रचना है, इसलिए सामवेद से और ऋग्वेद काल के पश्चात विकसित सभ्यता और संस्कृति का पता चलता है। सामवेद ऋग्वेद का एक तरीके से पूरक है। सामवेद के आचार्य जैमिनी माने जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार सामवेद की 1000 शाखाएं थी पर इनमें से आज केवल तीन ही शाखाएं रह गई है –  कौथुमीय, रणायनी, और जैमिनीय।

सामवेद के मुख्य दो भाग हैं आर्चिक और गान। आर्चिक  का अर्थ है ऋचाओं का समूह विचारों का समूह। आर्चिक के दो भाग हैं – पूर्वार्चिक और उत्तरार्चिक।

पूर्वार्चिक में 6 अध्याय और कुल 640 ऋचाएं हैं, जबकि उत्तरार्चिक में 21 अध्याय और 1225 ऋचायें हैं। इस प्रकार सामवेद में कुल 1865 ऋचायें हैं।

पूर्वार्चिक के 6 अध्याय हैं – पहला अध्याय ‘आग्नेय पर्व’ (अग्नि से सम्बंधित ऋचायें), दूसरे से चौथा अध्याय ‘ऐन्द्रिय पर्व’ (इंद्रा की स्तुति), पांचवा अध्याय ‘पवमान पर्व’, और छठा अध्याय ‘आरण्यक पर्व’ है।

सामवेद यहाँ पीडीऍफ़ (PDF) में पढ़िए साभार: संस्कृत साहित्य प्रकाशन

अथर्ववेद (Atharvaveda)

अथर्ववेद की रचना अन्य तीनो वेदो से बाद में हुयी है और बाकि तीनो वेदो से इसकी भाषा सरल भी है।

अथर्ववेद की विषयवस्तु अन्य तीनो वेदो से भिन्न हैं। जहाँ अन्य तीन वेदो में यज्ञों, देवस्तुति और स्वर्ग को महत्ता दी गयी हैं वही अथर्ववेद में औषधि (दवाइयां), जादू-टोना, लौकिक जीवन अदि को महत्व दिया गया है।

अथर्ववेद में ऋग्वेद से ली गयी मंत्रो की संख्या 1200 हैं।

पतंजलि के समय (लगभग 200 ईसा पूर्व) अथर्ववेद की नौ संहितायें उपलब्ध थी जो अब सिर्फ तीन रह गयी हैं – पिप्लाद, मोद, और शौनक।

नौ संहितायें हैं – पिप्लाद, तोड़, मोद, शौनक, जावल, जलद, ब्रह्मदेव, देवदर्श, और  चरणवैद्य।

सबसे प्रचलित संहिता है शौनकीय संहिता, जिसमे 20 कांड, 731 सूक्त तथा 5987 मंत्र हैं।

अथर्ववेद यहाँ पीडीऍफ़ (PDF) में पढ़िए। साभार: संस्कृत साहित्य प्रकाशन

यह भी पढ़िए: दिवंगत आत्मा को सद्गति या REST IN PEACE (RIP)

उपनिषद (Upanishads) क्या हैं?

उपनिषदों को आत्म ज्ञान (आत्मान-ज्ञान) देने के लिए बनाया गया है, इसलिए उपनिषद वेदांत दर्शन के लिए मुख्य ग्रंथ हैं। वेदांत दर्शन, जो मानता है कि आत्मा को इस भौतिक शरीर और संसार के स्रोत और निर्माता के रूप में जानने से मुक्ति मिल सकती है।

उपनिषदों का मुख्य उद्देश्य शारीरिक शरीर के साथ व्यक्ति की पहचान को नकारना था। उपनिषदों का कहना है कि संसार का कोई वास्तविक उद्देश्य नहीं है, क्योंकि यह माया का सृजन है और ब्रह्म के द्वारा मिथ्या माना जाता है। यह सपने देखने वाले के समान है, जो सपने की दुनिया बनाता है और सपने में खुद को एक शरीर के रूप में देखता है और सपने की दुनिया को वास्तविक मानता है।

उपनिषद का अर्थ

उपनिषद शब्द का संधिविग्रह ‘उप + नि + षद’ है। उप मतलब निकट, नि का अर्थ नीचे, तथा षद का मतलब बैठना होता है। अर्थात् शिष्यों का गुरु के निकट नीचे बैठ कर ज्ञान प्राप्ति ही उपनिषद का पूर्णार्थ है।

उपनिषदों का वेदों से जुड़ाव

प्रत्येक उपनिषद् को चारो वेदो में से किसी एक शाखा से जोड़ा जा सकता है। उपनिषद वेदों का हिस्सा हैं।

उपनिषद् 108 हैं – 13 मुख्य उपनिषद्, 21 सामान्य वेदांत, 20 संन्यास, 14 वैष्णव, 12 शैव, 8 शाक्त, और 20 योग।

वेद और उनके उपनिषद् (Vedas aur unke Upanishads)

1. ऋग्वेद – 10 उपनिषद्

मुख्य उपनिषद् (2) – ऐतरेय, कौशितकी

सामान्य उपनिषद् (2) – आत्मबोध, मुद्गल

सन्यास उपनिषद् (1) – निर्वाण

सक्त उपनिषद् (3) – त्रिपुर, सौभाग्य-लक्ष्मी, बह्वृच,

वैष्णव उपनिषद् (0) –

शैव उपनिषद् (1) – अक्षमालिका

योग उपनिषद् (1) – नादबिंदु

2. सामवेद – 16 उपनिषद्

मुख्य उपनिषद् (2) – छान्दोग्य, केन

सामान्य उपनिषद् (3) – वज्रसूची, महा, सावित्री

सन्यास उपनिषद् (5) – आरुणि, मैत्रेय, बृहत सन्यास, कुंडिका, लघु सन्यास

सक्त उपनिषद् (0) –

वैष्णव उपनिषद् (2) – वासुदेव, अव्यक्त 

शैव उपनिषद् (2) – रुद्राक्ष, जबली

योग उपनिषद् (2) – योगचूड़ामणि, दरसन

3. यजुर्वेद – 51 उपनिषद्

क. कृष्ण यजुर्वेद (32)

मुख्य उपनिषद् (4) – तैतरीय, कथा, श्वेतश्वतर, मैत्र्याणि

सामान्य उपनिषद् (7) – सर्वसारा, शुक्ररहस्य, स्कन्द, गर्भ, सरीरक, एकाक्षर, अक्षी,

सन्यास उपनिषद् (3) – ब्रह्म, अवधूत, कथाश्रुति

सक्त उपनिषद् (1) – सरस्वती रहस्य,

वैष्णव उपनिषद् (2) – नारायण, काली संतरण,

शैव उपनिषद् (5) – कैवल्य, कालाग्नि रूद्र, दक्षिणमूर्ति, रुद्रहृदया, पंचब्रह्मा,

योग उपनिषद् (10) – अमृतबिंदु, तेजबिंदु, अमृतानंद, कशुरिका, ध्यानबिंदु, ब्रह्मविद्या, योगतत्व, योगशिखा, योगकुण्डलिनी, वराह

ख. शुक्ल यजुर्वेद (19)

मुख्य उपनिषद् (2) – बृहदारण्यक, ईशा

सामान्य उपनिषद् (6) – सुबाला, मन्त्रिका, निरालम्बा, पिंगला, अध्यात्म, मुक्तिका,

सन्यास उपनिषद् (6) – जबाला, परमहंस, भिक्षुक, त्रियतत्वाद्युता, याजन्वाल्क्य, शाट्यायनीय

सक्त उपनिषद् (0) –

वैष्णव उपनिषद् (1) – तारसार,

शैव उपनिषद् (0) –

योग उपनिषद् (4) – अद्वयतारका, हंसोपनिषद, त्रिशिखब्राह्मण, मण्डलब्राह्मण

4. अथर्ववेद – 31 उपनिषद्

मुख्य उपनिषद् (3) – मुण्डक, माण्डूक्य, प्रश्नोपनिषद्

सामान्य उपनिषद् (3) – आत्मा, सूर्य, प्राणाग्निहोत्र

सन्यास उपनिषद् (4) – आश्रम, नारदपरिव्राजक, परमहंस परिव्रजक, परब्रह्म

सक्त उपनिषद् (4) – सीता, देवी, त्रिपुरातापिनी, भावन

वैष्णव उपनिषद् (9) – नृसिंह तापनीय, महानारायण, राम रहस्य, राम तापनीय, गोपाल तापनीय, कृष्णा, हयग्रीव, दत्तात्रेय , गरुड़

शैव उपनिषद् (6) – भस्मजाबाल, गणपति, अथर्वसिरस्, अथर्वशिखा, बृहज्जाबाल, शरभ,

योग उपनिषद् (3) – शाण्डिल्य, पाशुपतिब्रह्म, महावाक्य

पुराण (Puranas) क्या हैं?

पुराण स्मृति ग्रंथों का हिस्सा हैं। वेदो की भाषा जटिल होने के कारण आम आदमियों को समझाना कठिन था. इसलिए रोचक कथाओं के द्वारा वेदो के ज्ञान के जानकारी देने की प्रथा चली, जिनके संकलन को पुराण कहा जाता है। पुराणों का उनका मुख्य उद्देश्य भक्ति और भक्ति को जनता के बीच फैलाना था।

 18 महा पुराण और 18 उप पुराण या  लघु पुराण हैं।

18 महापुराण (Mahapuran) हैं 

(1) ब्रह्मपुराण (2) पद्मपुराण (3) विष्णुपुराण (4) शिवपुराण (5) श्रीमद्भावतपुराण (6) नारदपुराण (7) मार्कण्डेयपुराण (8) अग्निपुराण (9) भविष्यपुराण (10) ब्रह्मवैवर्तपुराण (11) लिंगपुराण (12) वाराहपुराण (13) स्कन्धपुराण (14) वामनपुराण (15) कूर्मपुराण (16) मत्सयपुराण (17) गरुड़पुराण (18) ब्रह्माण्डपुराण।

18 उप पुराण (Uppuran) या  लघु पुराण (Laghu Puran) हैं

(1) सनत-कुमार (2) नरसिम्हा (3) बृहन-नारदीय (4) दुर्वासा (5) शिव-रहस्य (6) कपिला (7) वामन (8) भार्गव (9) वरुणा (10) कलिका (11) साम्बा (12) नंदी (13) सूर्य (14) परासर (15) वशिष्ठ (16) गणेशा (17) मुद्गल (18) देवी-भगवत।

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